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________________ विषय २८६ [ ४१ ] बोल नम्बर | विपय बोल नम्बर परिग्रह परिमाण व्रत के पांच पांच निर्याण मार्ग २८० अतिचार ३०५ । पांच आश्व परिग्रह विरमण महाव्रत ३१६ | पांच प्रत्याख्यान ३२८ परिग्रह विरमण रूप पंचम महा / पांच अस्तिकाय २७६ व्रत की पांच भावनाएँ ३२१ पांच संवर २६६ परिग्रह संज्ञा १४२ । पांच समिति की व्याख्या परियह संज्ञा चार कारणों से और उसके भेद ३२३ उत्पन्न होती है १४६ । पांच शौच ३२७ परिच्छेद्य किरियाणा पांच प्रकार का प्रत्याख्यान ३२८ परिज्ञा पांच १५ । पांच प्रतिक्रमण ३२६ परिणामिया (पारिणामिकी) २०१ । पांच अवग्रह ३३४ परित्त संसारी पांच महानदियों को एक मास परिमित पिण्ड पातिक में दो अथवा तीन बार पार परिवर्तना परिहार विशुद्धि चारित्र करने के पांच कारण ३३५ पांच अवन्दनीय साधु परोक्ष ३४७ पांच पग्जिा परोक्ष ज्ञान के दो भेद ३६३ पांच व्यवहार परोक्ष प्रमाण के पांच भेद पांच प्रकार के मुण्ड ३६४ पर्यङ्का पांच निर्ग्रन्थ ३६५ पर्याप्त पर्याय पांच प्रकार के श्रमण पर्यायार्थिक नय पांच बोल छद्मस्थ साक्षान् पल्योपम की व्याख्या और नहीं जानता ३८६ भेद १०८ पांच इन्द्रियाँ पश्चानुपूर्वी ११६ । पांच इन्द्रियों के संस्थान ३६३ ३७२ ३६२
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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