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________________ ३११ भेद ३११ [ २५ ] विपय बोल नम्बर विषय बोल नम्बर अनुयोग द्वार सूत्र का संक्षिप्त अप्रत्युपेक्षित दुष्प्रत्युपेक्षित उच्चार परिचय २०४ प्रस्रवण भूमि अन्तकियाएं चार २५४ अप्रत्युपेक्षिन दुष्प्रत्युपेक्षित अन्तचरक ३५२ | शय्या संस्तारक ३११ अन्तरद्वीपिक ७१ । अप्रथम समय निर्ग्रन्थ । अन्तरात्मा १२५ । अप्रमाण अन्तगय कर्म के पांच भेद ३८८ अप्रमाद २६९ अन्नाहार __ ३५६ अप्रमार्जिन दुष्प्रमार्जित उच्चार अन्न इलाय चरक ३५३ प्रस्रवण भूमि अन्य प्रकार से मेघ के चार । अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित शय्या (ख. १७४ । संस्तारक अपक्वौपधि भक्षण ३०७ । अप्रावृतक अपरिगृहीतागमन ३०४ । अभयदान १६७ अपरिग्रह २६६ , अभव सिद्धिक अपरिश्रावी ३७१, अभिवर्धित संवत्सर अपर्याप्त ८, अभिषेक सभा ३६७ अपवाद ४० , अमृषा अपश्चिम मारणान्तिक मले- अमैथुन खना के पांच अतिचार ३१३ अयोग २६६ अपाय विचय २२० अरसाहार अपायापगम अतिशय (ब) १२६अरिहन्त अपूर्व करण अरिहन्त भगवान के चार अपौद्गलिक समकित मूलातिशय (ख) १२६ अप्रत्याख्यानिकी क्रिया २६३ | असली . अप्रत्याख्यानावरण १५ अर्थ कथा ३५६ ४०० २६६ २६६
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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