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________________ श्रा सेठिया जैन प्रन्थमाला क्रियाओं का पालन करना सम्यगचारित्र है । चारित्र मोहनीय के क्षय, उपशम या क्षयोपशम से यह उत्पन्न होता है। (उत्तराध्ययन अध्ययन २८ गाथा ३०) (नत्त्वार्थ सूत्र अध्याय १ सूत्र १) ८०-ममकित के दो प्रकार से तीन भेदः (१) कारक (२) गेचक (३) दीपक । (१) औपशमिक (२) क्षायिक (३) क्षायोपशमिक कारक समकित:-जिस समकित के होने पर जीव सदनुष्ठान में श्रद्धा करता है । स्वयं सदनुष्ठान का आचरण करता है तथा दमरों से करवाना है । वह कारक समकिन है । यह ममकित विशुद्ध चारित्र वाले के समझनी चाहिए । रोचक समकित:-जिस समकित के होने पर जीव सदनुष्ठान में मिर्फ रुचि रखता है। परन्तु मदनुष्ठान का आचरण नहीं कर पाता वह रोचक समकित है। यह समकित चौथे गुणस्थानवर्ती जीव के जाननी चाहिए । जैसे श्रीकृष्णजी, श्रेणिक महाराज आदि। दीपक समकितः-जो मिथ्या दृष्टि स्वयं तत्वश्रद्धान से शून्य होते हुए दूसरों में उपदेशादि द्वारा तत्त्व के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करता है उसकी समकित दीपक ममकित कहलाती है। दीपक समकितधारी मिथ्यादृष्टि जीव के उपदेश आदि रूप परिणाम द्वारा दूसरों में समकित उत्पन्न होने से उसके
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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