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________________ श्री सन सिद्धाना बीज संपह परिणाम दूसरों की समकित में कारण रूप हैं । समकिन के कारण में कार्य का उपचार कर प्राचार्यों ने इसे समकित कहा है। इस लिए मिथ्या दृष्टि में उक्त समकित होने के के सम्बन्ध में कोई शंका का स्थान नहीं है। (विशेषावश्यक भाष्य गाथा २६७५ पृष्ठ १०६४) (द्रव्य लोक प्रकाश तीसरा सर्ग६६८-६७०) (धर्म संग्रह अधिकार २) (श्रावक धर्म प्रज्ञप्ति) औपशमिक समकितः-दर्शन मोहनीय की तीनों प्रकृतियों के उपशम से होने वाला आत्मा का परिणाम औपशमिक समकित है । औपशमिक समकित सर्व प्रथम समकित पाने वाले तथा उपशम श्रेणी में रहे हुए जीवों के होती है। दायिक समकितः अनन्तानुबन्धी चार कषायों के और दर्शन मोहनीय की तीनों प्रकृतियों के क्षय होने पर जो परिणाम विशेष होता है वह क्षायिक समकित है। क्षायोपशमिक समकित:-उदय प्राप्त मिथ्यात्व के क्षय से और अनुदय प्राप्त मिथ्यात्व के उपशम से तथा समकित मोहनीय के उदय से होने वाला आत्मा का परिणाम क्षायोपशमिक सम्यक्त्व है। (अभिधान राजेन्द्र कोष भाग ३ पृष्ठ ६६१) (प्रवचन सारोद्धार गाथा ६४३ से ६४५) (कर्मग्रन्थ पहला भाग गाथा १५) ८१-समकित के तीन लिंग: (१) श्रुत धर्म में राग (२) चारित्र धर्म में राग (३) देव गुरु की वैयावच्च का नियम ।
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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