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________________ १६६ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Nyāyaśātra) ४६७. न्यायविनिश्चय विवरण Opening! श्रोमज्ज्ञानमयोदयोन्नतपदव्यक्तोविविक्त जगत् कुर्वन्सर्वतनूमदीक्षामप्ससविश्व वचो रश्मिभि ॥ व्यातन्वन्भुवि भन्यलोक नलिनी पडेप्वरखडश्रिय श्रेय शाश्वतमातनोतु भवता देवोजिनाहयन्यति. ||१|| Closing : व्याख्यानरत्नमालेय प्रस्फुरन्नयदीधिति । क्रियता हृदि विद्वद्भिस्तुदतीमानस तम ॥ Colophon . श्रीमासिंह महीपते परिषधि प्रख्यातवादोन्नति तर्कन्यायतमोघ्नतोदयगिरि सारस्वत श्री निधिः ॥ शिप्य श्रीमतिसागरस्य विदुषा पत्युस्तप. श्रीभृता भर्तु · सिंहपुरेश्वरो विजयते स्याद्वादविद्यापति ॥ इत्याचार्यवर्यस्याद्वादविद्यापति विरचिताया न्यायविनिश्चयतात्पर्यावधोतिन्या व्याख्यानरत्नमालाया तृतीय प्रस्ताव समाप्त. ॥ समाप्त च शास्त्रम् । ॐ नमो वीतरागाय ॐ नम सिद्ध भ्य । करकृतमपराध क्षन्तुमर्हन्ति सन्त । ६ शाके १८३२ वर्तमानसाधारण नाम सवत्सरे उदयगयने वसतऋतौ चैत्रे मासे कृष्णपक्षे द्वादश्या भार्गववासरे मध्याह्नसमये समाप्तोऽय अथः । इदपुस्तक ३६ पी प्रात दुर्घग्रामवासिना फुडा जेमरावटे इत्युपनामक रामकृष्णशास्त्रीणा लिखितम् ॥ श्री सन् १२१०-५-७ ॥ ४६८. परीक्षामुखवचनिका Opening : श्रीमत् वीर जिनेश रवि, तम अज्ञान नशाय । शिव पथ वरतायो जगति, वदो मै तसु पाय ।। Closing : अष्टादशतमाठिलय विक्रम सवत माहि । सुकल असाढ सु चोथि बुध पूरण करी सुचाहि ॥ Colophon: इति परीक्षामुख जैनन्यायप्रकरण की लघुवृत्ति प्रमेयरत्न. माला की देशभापामय वचनिका जयचद छावडा कृत सपूर्ण। सवत् १९२७ मिती पोहोवदी १। श्री।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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