SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० श्री जैन सिद्धान्तभवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oru ntal Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah .४६६. परीक्षामुखवचनिका Opening | देखे-क्र० ४६४ । Closing : देखे-क्र. ४६४। Colophon इति परीक्षामुख जैनन्याय प्रकरण की लघुवृत्ति प्रयेयरत्न माला की देशभाषामय वचनिका जयचद्र छावडा कृता समाप्ता। सवत् १९६२ वैशाख कृष्णा ५ पचमी सोमवासरे । शुभ भवतु । ४७०. प्रमाणलक्षण Opening सिद्धर्धाम महारिमोहहनन कीर्ते पर मदिरम्, मिथ्यात्वप्रतिपक्षमक्षयसुख संशीति विध्वसनम् । सर्वप्राणिहित प्रभेदु वचन सिद्ध प्रमालक्षणम्, सतश्चेतसि चिंतयतु सतत श्री वर्धमान जिनम् । Closing : . . . . तत्कालभावी-उत्तरकालभावी वा विज्ञानप्रमाणता हेतु: न भावत्तत्कालभाविक्वचिन्मिथ्यात्वज्ञानेपि तस्य भावात् अथोत्तर कालभावि-स किं ज्ञातोऽज्ञातो न तावदज्ञा ॥ Colophon: नही है। ४७१. प्रमाण मीमांसा Opening : अनन्तदर्शनज्ञानवीर्यानन्दमयात्मने । नमोऽर्हते कृत्याकृत्य धर्मतीर्थायतायिने ।। Closing ! यतो न विज्ञातस्वरूपस्यास्यवलवनं जयाय प्रभवति न चावि. ज्ञातस्वरुप परतत्र भेत्तु शक्यमित्याह । Colophon: ____ इति प्रमाणमीमासा ग्रन्थ । मिती श्रावण कृष्णा १० सवत् १९८७। ४७२. प्रमाणप्रमेय Opening : तत्रिकालवयंशेपवस्तुक्रमव्यापि केवल सकलप्रत्यक्षम् ॥ Closing, स्पर्शरसगधरूपा शब्दसख्याविभागसयोगो परिमाण च प्रथक्त्व तथा परत्वापेच ? समाप्त श्रीरस्तु.॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy