SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६०) श्री जैन नाटकीय रामायण मोहिनी-पिताजी आपने मुझे पहले से ही कह रखा है कि मुझे आज्ञा लेने की कोई आवश्यक्ता नहीं है। दूसरे यदि मैं आज्ञा मांगू और भाप न दें, तो मेरा जाना रुक जाय । कहिये में चली जाऊ न मीटिंग में ? सेठजी-(स्वगत) बस अब ये छोरी बिगड़ गई। वास्तव में मेरे सिर पर कलंक का टीका लगायेगी । मोहिनी-पिताजी ! आप क्या सोच रहे हैं। मुझे उत्तर दीजिये । मीटिंग के लिये देर होरही है। सेठजी-~-श्राज मेरी कुछ तबियत खराब है । मैं चाहता हूं कि तुम भाज कहीं मत जाओ! __ मोहिनी-आपकी तबियत में मैं क्या कर सकती हूं। आप मुझे मीटिंग में जाने से क्यों रोकते हैं । भाप कहें तो मैं उधर से उधर ही डाक्टर को बुलाती लाऊंगी । सेठजी-मोहिनी मैं तुम्हारा पिता हूं । क्या तुम भाज इतना भी नहीं कर सकती कि मेरे लिये रुक जाओ! मोहिनी---यदि मैं किसी बुरे काम के लिये जाती हो तो आप मुझे रोकते । अब मैं कदापि नहीं रुक सकती हूं। गुडबाई ( चली जाती है ) सेठजी-इन सुधार कों का नाश हो ! इन्होंने मुझे
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy