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________________ ( १५८ ) श्री जैन नाटकीय रामायण। - - में लगाना चाहिये । शिक्षा की बराबर कोई दूसरी वस्तु ही नहीं है।' सज्जन-आपकी पुत्री को प्रायू इस समय कितनी होगी। सेठजी-उसकी आयु इस समय बाईस वर्ष की है। सज्जल-उसके पती क्या कार्य करते हैं। तथा उसके कितने बच्चे हैं। सेठजी---वह कहती है कि मैं महारानी ऐलीजाबेथ सरीखी कुवारी ही रहूंगी । इस लिये उसने अभी तक ब्याह नहीं कराया है। सज्जन---किन्तु आप उसकी बातों में आगये न ? सेठजी-तो आप ही बताइये मैं क्या करूं ? सज्जन--आप याद रखिये ! वह आपके माथे पर कलंक का टीका लगाने की तैयारी कर रही है। सेठजी---कहीं शिक्षा देने का भी ऐसा बुरा परिणाम होता है ? श्राप कृपया ऐसे शब्द मुंह से न निकालिये। वरना आपके लिये बुरा होगा। सज्जन-थे तो आप स्वयं देखलगे कि बुरा होगा या - अच्छा और किसके लिये होगा। क्षमा कीजिये मैं जाला हूं। (चला जाता है।)
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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