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________________ जम्बूस्वामी चरित्र - हुई, वैसे ही तुम्हारी दशा होगी, जो तुम अज्ञानसे मोहित होकर प्राप्त संपदाको छोड़कर भागेके भोगोंके लामके लिये तप करना चाहते हो। जम्बूस्वामीकी कथा। तब जम्बूस्वामी कहने लगे कि हे मामा ! आपके कथन के उत्तरो मेरी कथा भी सुनो __एक वणिक पुत्र घरके कार्य में लीन था । एक दिन व्यापारके लिये स्वयं परदेश गया । मार्ग भूलकर वह एक भयानक वनमें फंस गया। प्यास भी बहुत लगी। पानी न पाकर पश्चाताप करने लगा कि मैं घरसे वृथा ही आकर इस बनके भीतर फंस गया। यदि जल न मिला तो प्याससे मेरा मरण अवश्य होजायगा । ऐसा विचार करते हुए बैठा था कि चोरोंने भाकर उसका माल लूट लिया। 'धनकी हानिके शोकसे व प्याससे पीड़ित होकर वह एक पग भी चल न सका । एक वृक्षके नीचे सोगया, वहां सोते हुए उसने एक बटन देखा कि वनमें एक सरोवर है, उसका पानी मैं पीरहा हूं, 'ह्विासे पानीका स्वाद रहा हूं। इतनेमें जाग उठा तो देखता है कि न कहीं सरोवर है, न कहीं जल है। हे मामा ! स्वप्नके समान 'सब सम्पदाओंको जानो । यकायक मरण भाता है, सब छूट जाता है। ऐसे स्वप्नके समान क्षणभंगुर भोगोंमें महान् पुरुषोंका स्नेह कैसे होसता है? १६८
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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