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________________ जम्बूस्वामी चरित्र ठगा गया है। जैसे किसीके पास स्त्रियां हों, परन्तु उसके काग-भोगका उत्साह न हो। या किसीको काम-भोगका उत्साह. हो, परन्तु स्त्रियां न हों। किसीको दान करनेका उत्साह तो है परन्तु घरमें द्रव्य नहीं है। किसीके घरमें दम है परन्तु दान करनेका उत्साह नहीं है । दोनों बातोंको पुण्यके उदयसे धारकर जो नहीं भोगता है उसे मूर्ख ही कहना चाहिये। मूर्ख मानव खरगोश के सींगको व बंध्याके पुत्रको मारना चाहता है सो उसकी मूर्खता है। जिसके लिये चतुर पुरुष तप करनेका क्लेश करते हैं। वह सब सर्वांग पूर्ण सुख तेरे सामने उपस्थित है, उसको छोड़कर और अधिकची इच्छासे जो तुम तप करना चाहते हो सो यह तुम्हारा विचार उचित नहीं है। दृष्टांतरूपमें मैं एक कथा कहता हूं। सो हे मागिनेय ! ध्यानसे सुन एक युवान ऊंट था, वह वनमें इच्छानुसार बहुतसे वृक्षों को खाता फिरता था । एक दिन वह एक वृक्षके पास आया जो कूपके पास था। उसके पत्तोंको गलेको ऊँचा करके खाने लगा। उसके स्वादिष्ट पत्तोंको खाते खाते उसके मुखमें एक मधुकी बूंद पड़ गई। मधुके रसका स्वादका लोभी हो वह विचारने लगा कि इस वृक्षकी सबसे ऊँची शाखाको पफड़नेसे बहुत अधिक मधुका लाभ होगा। मधुका प्यासा होकर ऊपरकी शाखापर वारवार गलेको उठाने लगा तो पग उठ गए, यकायक वह बिचारा कूपमें गिर पड़ा। उसके सन मङ्ग टूट गए। जैसे महा लोभके कारण इस ऊँकी दशा १६७
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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