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________________ जम्बूस्वामी चरित्र विद्यचरकी कथा | कुमारकी कथाको सुनकर वास्तवमें वह उसी तरह निरुत्तर होगया जैसे एकांत मतवादी स्याद्वादीके सामने निरुत्तर होजाते हैं । फिर भी वह विद्युच्चर दूसरी कथा कहकर उधम करने लगा । एक कोई वृद्ध बनिया था, वह अपनी स्त्रीसे प्रेम करता था परन्तु उसकी स्त्री नवयौवन व्यभिचारिणी व दुष्टा थी । एक दिन वह घर से सुवर्णादि लेकर निकल गई । वह काम - लेपटी इच्छानुसार भोगोंमें रत होना चाहती थी । जाते हुए किसी घूर्त ठगने देख लिया, देखकर उसको मीठे वचनों से रिझाने लगा । I हे सुंदरी | तुझे देखकर मेरे मन में स्नेह पैदा होगया है कि न जाने क्या कारण है । जन्मांतरका तेरे साथ लेइ है ऐसा विदित होता है । वह कहने लगी कि यदि तेरे मनमें मेरी तरफ प्रेम है तो आजसे तुमही मेरे भर्तार हो, दूसरा नहीं है। इस तरह परस्पर स्नेन्हवान हो वे पति पत्नी के समान रहने लगे, इच्छानुसार कामक्रीडा करने लगे । इस तरह दोनोंका बहुतसा काळ चीत गया । एक दिन वह दूसरे कामी पुरुष के साथ स्नेहवर्ती होगई, वह निर्लज्ज घृणा रहित माया व मिथ्या भावसे मरी हुई कामभाव से जलती हुई दोनों दीके साथ रतिकर्म करने लगी। वास्तवमें स्त्रियोंके मनमें कुछ और होता है, वचन कुछ कहती हैं । पण्डितोंको कभी भी स्त्रियोंका विश्वास न करना चाहिये । एक दिन दुष्टबुद्धिवारी प्रथम जार पुरुष दूसरे पुरुषका आना १६९
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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