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________________ जम्बूस्वामी चरित्र किसी वीर योद्धा को भेजा है। इन वचनोंको सुनकर मृगांक राजाके शरीर में आनंदले रोएं खड़े होगए । तब वह मृगांक भी अपनी सब सेनाको सजकर युद्ध के लिये नगरसे बाहर निकला । उसकी सेनाकी बाजों की ध्वनि सुनकर रत्नचूल भी सावधान होगया । क्रोधाग्निसे जलता हुआ युद्ध करनेको सामने आया । इसतरह दोनों तरफकी सेनाओं ने भयंकर युद्ध चल पड़ा। हाथी हाथियोंसे, घोड़े घोड़ोंसे, रथ रथोंसे, विद्याधर विद्याधरोंसे परस्पर भिड़ गए । इस भयंकर युद्धका वर्णन हम क्या करें ? रूविकी धारा से समुद्र ही होरहा है। जिनकी छाती भिद गई है वे उसको पार करके शत्रु के ऊपर जा नहीं सकते थे । घोड़ोंके खुरोंका धूला आकाशमें छाया हुआ है। जिससे दिनमें भी रात्रिका अनुमान होता है। कहीं योद्धा एक दूसरे का नाम लेकर ललकार रहे हैं। रथोंके चलनेकी, हाथियोंकी घंटियोंकी व उनके दहाड़नेकी, धनुषों की टंकारकी, योद्धाओंके रे रे शब्दकी महान ध्वनि हो रही है । कहीं योद्धा, कहीं गज, कहीं रथ भम पड़े हैं | तलवार, कुन्त, मुद्रा, लोहदंड आदि शस्त्रोंसे सैकड़ोंके सिर चूर्ण हो गए हैं । कितनोंद्दीकी कमर टूट गई है, आकाशमें तलवार पवनादिके कारण विजलीसी चमक रही है । ऐसा महान युद्ध होरहा है कि वहां अपना पराया नहीं दिखता है। कहीं भूमिमें आंतें पडी हैं, कोई बालोंको फैलाए मुर्छित पड़े हैं, कोई किसीके केशोंको पकड़कर मार रहा है। सिरसे रहित घड़ भी जहां युद्ध के लिये नाचते थे । कुमार व रत्नचूल दोनों भाकाशमें १२२
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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