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________________ जम्बूस्वामी चरित्र - - विमानों पर युद्ध करने लगे। जम्बूस्वामीने रचूलका विमान तोड़ दिया तब वह भूमिपर भागया। जैसे ही यह भूमिपर गिर पड़ा, तब हाथीपर चढ़े मृगांकने महावतको पूछा कि किसको किसने मारा ? तब उसने कहा कि पराक्रमी जम्बुकुमारने रत्नचूकको भूमिपर गिरा दिया। इतने में कुमारने रत्नचूलको दृढ़ बांध लिया । राजाके बांधे जानेपर रत्नचूलकी सन सेना भाग गई। तब राजा मृगांकने द उसकी ओरके विद्याधरीने जम्बूकुमारकी प्रशंसा की। चारों तरफ जय ज्यार शब्द हो गया । कहने लगे धन्योऽसे त्वं महामाज्ञ रूपनिर्जितमन्मथ । क्षात्रधर्मस्य चोन्नत्यमद्य जातं त्वया कृतम् ।। २५२ ॥ भावार्थ-हे महाबुद्धिवान् , कामदेवके रूपको जीतनेवाले कुमार तू धन्य है । तुमने मान क्षत्रिय धर्मके ऐश्वर्यको भले प्रकार प्रगट कर दिया। देरल राजाकी सेना में जीतके नगरे वजने लगे। बंदीजन कुमारके यश कहने लगे। व्योमगति विद्याधरने जंबुकुमारका मृगांकके साथ बहुत प्रेम करा दिया। घुटनोंतक लम्बी भुजाधारी जंबूकुमारने माठ हजार विद्याघरोंको लीका मात्र में जीत लिया। यह सब पुण्य का महात्म्य है। उस पुण्यके उदयसे ही कुमारने जयलक्ष्मी प्राप्त की । इसलिये जिनको मुखकी इच्छा है उनको एक धर्मका सेवन सदा करना योग्य है। कहा है: एक एव सदा सेव्यो धर्मो सौख्यमभीप्सुभिः। यद्विपाकात्कुमारेण जयश्रीः किंकरीकृता ॥ २५७ ॥ १२३
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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