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________________ - - जम्बूस्वामी चरित्र बल दिखलाया । सर्व और चुप रहे, परन्तु यशस्वी कुमारसे न रहा गया। वह बादी-प्रतिवादीके समान भनेक दृष्टान्तोंसे उत्तर देने लमा। हे विद्याधर ! ऐसे विना जाने वचन कहना ठीक नहीं है । ज्ञान विना किसीके बल व अवलको कौन जान सक्ता है ? कुमारके वचनको सुनकर व्योमगति विद्याधर निरुत्तर होगया । मौनसे कुमारके पराक्रमको देखने के लिये ठहर गया । श्रेणिकराजा उनके वचनोंको सुनकर अहंकार युक्त होकर यह विचारने लगा कि यह काम बहुन कठिन है, ऐसा सोचकर मन में घड़ा गया। राजा वार बार विचार करता है, खेदित होता है, उस कामको दुर्लभ जानकर कुछ करनेका दृढ़ संकल्प न कर सका । न तो शीघ्र चलनेको तय्यार हुमा न उसको कुछ उत्तर ही दे सका। दो काठकी तराजुमें चढ़कर राजाका मन हिलने लगा। जम्बूकुमारका साहस। इतने हीमें जंबूस्वामी कुमारने आनंद सहित गंभीर वाणीसे शांतभाव द्वारा ऊंचे स्वरले कहा-हे स्वामी ! यह काम कितना है ? आपके प्रसादसे सिद्ध हो जायगा। सूर्यकी तो बात ही दुर रहे, उसकी किरण मात्रसे अंधकार मिट जाता है। मेरे समान बालक भी उस कामको कर सक्ता है तो आपकी तो बात ही क्या है, जिनके पास चार प्रकारकी सेना तय्यार है। जंबूकुमारके वचन सुनकर श्रेणिक महाराज आनंदित होगए। जैसे सम्यग्दृष्टी तत्वकी बात कर भानंदित होजाता है और जम्बु
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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