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________________ अम्बूस्वामी चरित्र. भावदेव मुनिदीक्षा | इसप्रकार सुनिमहाराज के शांतिगर्भित अनुपम वचनों को सुनकर भावदेव ब्राह्मणका हृदय कंपित होगया, संसार भ्रमण से भयभीत होगया, मनमें वैराग्य पैदा होगया। हाथ जोडकर सौधर्म मुनिराजसे प्रार्थना करने लगा कि हे स्वामी ! मैं संसार - समुद्रसे डूब रहा हूं, मेरी रक्षा कीजिये, जिससे मैं नविनाशी आत्मीक सुखको प्राप्त कर सकूं । कृपा करके मुझे पवित्र जैन साधुकी दीक्षा दीजिये । यह दीक्षा सर्वपरिग्रहके त्यागसे होती है तथा यही संसारका छेद करनेवाली है ऐसा मुझे निश्चय होगया है । भावदेव के ऐसे शांत वचन सुनकर सौधर्म मुनिराजने उसको संतोषप्रद वचन कहे - हे ब्रह्म ! यदि तु वास्तव में संसार के भोगोंको रोगके समान जानकर वैराग्यवान हुआ है तो तू इस जिनदीक्षाको धारण कर। जो जीव संसार में रागी हैं वे इसे धारण नहीं कर सक्ते । गुरुमहाराजके उपदेश से शुद्ध बुद्धिघारी भावदेवको बहुत धैर्य प्राप्त हुआ। वह ब्रह्मणोत्तम सब शल्य त्यागकर मुनिदीक्षा में दीक्षित होगया । फिर वे सौधर्म योगीराज अपने संयमकी विराधना न करते हुए पृथ्वीतल पर विहार करने लगे । वे मुनिराज गुणोंमें महान थे । . ऐसे गुरु के साथ साथ भावदेव मुनि पापरहित भावसे घोर तप करने लगा । दुःख तथा सुखमें समान भाव रखता था । एकाग्र भावसे कभी ध्यान कभी स्वाध्यायमें निरंतर लगा रहता था । विनयवान होकर ब्रह्म भावको उत्पन्न करनेवाले शब्द ब्रह्ममईं तत्वका अभ्यास ४८
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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