SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ' अस्वामी चरित्र घर, स्त्री भादि सब छूट जानेवाले हैं। मियादृष्टि भज्ञानी इन सब भनित्य पदार्थों में नित्यपनेकी बुद्धि करता है। चाहता है कि ये सदा बना रहे। अपनेको सुख मिलेगा, इस भाशासे दुःखोंके मूल कारण इन विषयभोगोंमें रमण करता है। जब विषयभोगोंका वियोग होजाता है तब दुःखोंसे पीड़ित होकर पशुके समान कष्ट भोगता है। क्षणभरमें कामी होजाता है, क्षणभरमें लोभी होजाता है, क्षणभरमै तृष्णासे पीडित होता है, क्षणमें भोगी बन जाता है, क्षणभरमें रोगी होजाता है, भूतपीडित प्राणीकी तरह व्यवहार करता है। कहा है क्षणं कामी क्षणं लोभी क्षणं तृष्णापरायणः । क्षणं भोगी क्षणं रोगी भूताविष्ट इवाचरेत् ॥ १०९ ॥ यह भज्ञानी मोही प्राणी वारवार रागद्वेषमई होकर ऐसे कर्म बांधता है जिनका छूटना कठिन है। इसलिये वारवार दुर्गतिमें जाता है। कभी अत्यन्त पापकर्मके उदयसे नारकी होकर मसहनीय ताडनमारणादि दुःखोंको सागरोंतक सहता है। कभी तियेच गतिमें जन्म लेकर या मनुष्मगतिमें नीच कुलमें जन्म लेकर हजारों प्रकारके दुःखोंसे पीडित होता हुभा इस संसारमें भ्रमण किया करता है। चार गनियों में भ्रमण करते हुए इस जीवको मनंतकाल होगया। सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रमई धर्मको न पाकर इसे कभी थिरता नहीं मिली। इसलिये जो कोई प्राणी सुखका अर्थी है उसको अवश्य ही मिनेन्द्र कथित धर्मका संग्रह सदा करना चाहिये। '४७
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy