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________________ जम्मूस्वामी चरित्र करता था। अर्थात् ॐ, सोहम् भादि मंत्रोंसे निजात्माके स्वरूपको. ध्याता था। कहा है स्वाध्यायध्यानमैकाम्यं ध्यायविह निरंतरम् । सन्दब्रह्ममयं तत्वमभ्पसन् विनयानतः ॥ १२४ ॥ वंह भावदेव मनमें ऐसा समझता था कि मैं धन्य हूं, कृतार्थ हूं. वड़ा बुद्धिशाली है, अवश्य भवसागरसे तिरनेवाला ह भो मैंने इस उत्तम जैन धर्मका लाम प्राप्त किया है। ___ बहुत काल विहार करते हुए वे सौधर्म मुनिराज एक दफे भावदेवके साथ उसी वर्द्धमानपुरमें पधारे। उससमय विशुद्ध बुद्धिधारी भावदेवने अपने छोटे भाई भवदेवको याद किया। भवदेव ब्राह्मण इस नगरमें प्रसिद्ध था, पन्तु संसारके विषयों में अंधा था, एकांत मतके शास्त्रों अनुरागी था, अपने यथार्थ भात्महितको नहीं जानता था। भावदेवके भावों में करुणाने पर किया और यह संकल्प किया कि मैं स्वयं उसको जाकर सम्बोधूं तो उसका कल्याण होगा। परम वैराग्यवान होनेपर भी परहितकी कांक्षासे उसके घर स्वयं जानेका मनोरण कर लिया। मैं उसको महत् धर्मका उपदेश करूं। किसी तरह भी यदि वह समझ सायगा तो वह अवश्य संसारके भोगोंसे विरक्त होकर मुनि हो जायगा ऐसा भपने मनमें विचार कर भावदेव अपने गुरुके पास भाज्ञा मांगनेके लिये गए और कहा-हे महाराज! मुझे माज्ञा दीजिये कि मैं माकर अपने छोटे भाईको संबोधन करूं.
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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