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________________ जम्बूस्वामी चरित्र करता हुमा दुंदुभि बाजोंका शब्द होने लगा तथा घरणेंद्रोंके या भदनवासियों के भवनों में शंखकी महान ध्वनि हुई। चार प्रकारके देवोंने जन यह ध्वनि सुनी, इन्द्रोंके शासन शांपने लगे। भगवानको केवलज्ञान हुमा है, इस विजयको वे मासन सहन न कर सके । करावृक्ष हिलने लगे, उनसे पुष्पोंकी वर्षा होने लगी, सर्व दिशाएं निर्मल झलकने लगी, आकाश मेघाहित स्वच्छ भासने लगा, पृथ्वी धूलरहित होगई, शीत व सुहावनी हवा चलने लगी। जब केवलज्ञान रूपी चंद्रमा पूर्ण प्रगट हुमा तब जगतरूपी समुद्र आनन्दमें फूल गया । इसी समय सौधर्म इन्द्र करित देवकृत ऐरावत हाथीपर चढ़कर विपुलाचल पर्वतपर माया। अभियोगजातिके देवने ऐसा मनोहर हाथीज्ञा रूप धारण किया कि उसके बत्तीस मुख थे व एक एक मुख आठ आठ दांत थे, एकर दांतपर एक एक कमलिनीके माशय बत्तीस बत्तीस कमलके फूल थे, एक एक कमलके बत्तीस बत्तीस पत्ते थे, उन पत्तों से हरएक पत्तेपर छत्तीस बत्तीस देवांगना नृत्य कररही थीं। उनका नृत्य अदभुत था। ऐरावत हाथीपर चढ़ा हुमा इन्द्र था। उसके मागे किमरी देवियां मनोहर कंठसे श्री जिनेन्द्रका जयगान कर रही थीं। बत्तीस व्यंतरेन्द्र चमर ढार रहे थे, सरपर मनोहर छत्र था, अप्सरा देवियें मनोहर शोभाके लिये साथ में चल रही थीं, माकाशमें देवी-देवोंके द्वारा नील, रक्त आदि रङ्ग छाईहे थे। ऐसा मालूम होता था कि भाकाशमें संध्याकालका समय छाया हुआ है । देवोंकी सेना पूजाकी सामग्री २६
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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