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________________ - - जम्बूस्वामी चरित्र लिये हुए भाकाशमें चलती हुई ऐसी झलती थी कि देवोंकी सेनारूपी समुद्रमें मनेक तरंगें उठ रही हैं। इन्द्रादि देवोंने दृरले समवसरगको देखा। इसे देव शिल्पियोंने बड़ी भक्तिसे निर्माण किया था। इस समवसरणकी चौड़ाई एक योजन (४ कोस) थी। यह इन्द्रनीलमणिकी भूमिले शोमित थी। यह समवसरण इन्द्रनीलमणिसे रचा हुआ गोल था। मानो तीन जगतकी स्त्रियोंके मुख देखनेका दर्पण ही है। जिस समवसरणको इन्द्रकी माज्ञासे देवोंने रचा हो उसी शोमाका वर्णन कौन करसता है ? प्रथम धूलीशाल कोट है जो पांच वर्ण के रत्नरनोंसे बना है। उसके चारों तरफ सुवर्णके ऊंचे संभ हैं, जिसके तोरणों में रत्नमालाएं लटक रही हैं। फिर कुछ दुर जायर गलियों के मध्यमें सुवर्ण रचित ऊंचे मानस्तंम हैं। जिनको दुरसे देखनेपर मानियों का मान गल जाता है। ( यहां एक अन्य ग्रंथका श्लोक हैं जिसका भाव है कि)मानस्थंभोंने धागे चलकर सरोवर है। निर्मल जलकी भरी वापिसा है। फिर पुष्पोंकी वाटिकाएं हैं, फिर दुसरा कोट है, नाट्यशाला है, उपवन है, वेदियोंपर ध्वजाएं शोमायभान हैं, पहावृक्षोंका वन है, स्तुप है, महलोंकी पंक्तिये हैं, फिर स्फटिक मणिका फोट है, उससे आगे श्री मंडप है वहां बारह सभाए हैं, जहां देव, मनुष्य, पशु, मुनि भादि विराजते हैं, मध्यमें पीठ है उसके जार स्वयंभू महंत तीर्थकर बिराजते हैं। यह पीठ या चबूतरा तीन कटनीदार है। मणियोंकी शोभासे शोभित है। भगवान के ऊपर चलते हुए चमरोंकी प्रतिविम्ब पड़ती है
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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