SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जम्बूस्वामी चरित्र - यौवन, सुंदरता, व गुणोंकी नदी थी। जैसे नदी समुद्रकी तरफ जाती है वैसे यह अपने भारकी माज्ञानुकूल चलनेवाली थी। जैसे कल्पवृक्षमें लगी हुई कल्पबेल शोमती है वैसे यह चेकना रति कार्यमें अपने भारसे संलग्न हो शोमती थी। श्री महावीर विपुलाचल पर । एक दिन समाके भीतर नम्रीभूत राजाओंसे सेवित महाराजा श्रेणिक सिंहासनपर विराजमान थे। जैसे सुमेरु पर्वतपर झरने पड़ते हुए शोमते हैं वैसे राजापर दुरते हुए चमर चमक रहे थे । चन्द्रमण्डलके समान सिम्पर सफेद छत्र शोभता था। उस समय वनके मालीने बाद महाराज के दर्शन किये । प्रणाम करके विनय महित निवेदन करने लगा कि हे देव ! मैंने अपनी आंखोंले प्रत्यक्ष कुछ आश्चर्यमग घटनाएं देखी हैं, उन सर्वका थोडासा भी वर्णन मैं नहीं कर सक्ता हूं। तौभी हे महाराज ! कुछ अवश्य कहने योग्य कहता हूं____ इसी विपुलाचल पर्वतके मस्तकपर तीन जगतो गुरु महान् श्री बर्द्धमान तीर्थंकरका समवसरण विराजमान है । मैं उस समवसरणकी शोभा क्या पहूं! जहां स्वर्गके देवोंके समूह नौकरोंकी तरह भक्ति व सेवा कर रहे हैं। स्वर्गवासी देवोंके विमानोंमें क्षोमित समुद्रकी ध्वनिके समान घंटोंके शब्द होने लगे। ज्योतिषी देवों के विमानोंमें महान सिंहनाद कासा शब्द होने लगा, जिससे ऐरावल हाथीकी मद दूर होजावे । व्यतरोंक घरोंमें मेघोंकी गर्जनाको दूर २५
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy