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________________ जम्बूस्वामी चरित्र क्योंकि चौथे कालमें बंध व मोक्षका मार्ग चलता है, इसीलिये साधुओंने इसे कर्मभूमिका नाम दिया है । मसा कहा है: इतीत्थं तुर्यकालौऽसौ पंथा: स्याद्वंधमोक्षयोः । तस्मानिगद्यते सद्भिः कर्मभूरितिनामतः ॥ ९७।। इस चौथे झालमें बारह चक्रवर्ति, नौ नारायण, नौ प्रतिना. रायण नौ बलभद्र भी होते हैं। जिस कालमें विना किसी बाधाके चौवीस तीर्थंकरों को लेकर त्रेशठ शालाका पुरुष उरन्न होते हैं वही चौथा काल है। इस कालमें सर्व स्थानों पर महाव्रतधारी मुनि व देशवतघारी गृही श्रावक सदा दिखलाई पड़ते हैं । इस कालमें पूजा दानादि नित्याहममें तत्सर व सदाचारी गृहस्थ दर्शन प्रतिमासे लेकर उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा तक यथाशक्ति ग्यारह प्रतेमाओंको पालते हुए सदा मिलते हैं। जो ग्यारहवीं प्रतिमा धारी व्रती श्रावक होते हैं वे गृहको त्यागकर मुनिके समान परम वैराग्य भाव स्थिर रहते हैं। चौथे कालमें बालगोपाल सर्व प्रजाजन जैनधर्मको पालते हैं। हुंडावसर्पिणी काल।। कभी भी अन्य किसी अजैन धर्मका प्रकाश नहीं होता है। किन्तु जब कभी हुंडावसर्पिणी काल आजाता है तब उस कालमें अनेक पाखंड मत चल पड़ते हैं व सत्य धर्मकी हानि होती है। असंख्यात कोटिवार उत्सपिणी अवसर्पिणीके बीतने पर एक दफे हुंडावर्षिणी काल आता है। ऐसी बात अनन्तवार पहले हो चुकी है व मनन्तवार भागे होगी। जैसे किसी वर्ष में एक
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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