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________________ जम्बूस्वामी चरित्र - - एक माप्त अधिकका मल मास होता है, वैसे ही इस हुंडावसर्पिणीकालको जानना चाहिये । इस हुडासर्पिणी कालमें बहुनसे मनर्थ होते हैं। कालचक्रही मर्यादाको कोई रोक नहीं सका। जैसे कालके स्वभावसे ही वर्षा ऋतुके पीछे शरद ऋतु भाती है, वैसे कालके परिभ्रमणमें यह हुंडाकाल माता है। द्रव्योंका होना ही स्वभाव है। इस हुंडादसर्पिणी कादमें परमागमके अनुसार तीर्थकर ऐसे महान आत्माओशो भी उपसर्ग होता है। चक्रवर्तीका मानभंग अपने ही कुटुम्बसे होता है। इत्यादि वचनसे भगोचर बहुत ननर्थ होते हैं । तव प्राणीवध रूप हिपाका प्रचार होता है। जिससे तीन पापकर्मका बंध होता है। ब्राह्मण वर्ग इसी कालमें प्रगट होते हैं। मनिष्ट वुद्धिधारी ब्राह्मण यज्ञों के लिये पशुओंकी की हुई हिमासे पुण्यका लाम व कल्याण होना बताते हैं। इस प्रकरणये श्लोक हैंकिंतु इंडावसर्पिण्यां कालदोषादिह क्वचित् । प्रादुर्भवति पाखण्डास्तथापि च कृपक्षतिः ॥ १०४ ॥ गतायामवसर्पिण्यामुत्सर्पिण्यां तथैव च । असंख्यकोटिवारं स्यादेका हुंडासर्पिणी ॥ १०५॥ तद्यथा तत्र हुंडावसपिण्यां वा यथागमम् । तीर्थेशामुपसर्गो हि महानर्थों महात्मनाम् ॥ १०९ ॥ मानमङ्गश्च चक्रेशं जायते जातिपूर्वकः । इत्यादि बहवोऽनाः सन्ति वाचामगोचराः॥ ११० ॥
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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