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________________ जम्बूस्वामी चरित्र - रकी होती थी जिसका वर्णन परमागमसे विदित होगा। नपन्य मायु एक मंतर्मुहर्नकी होती थी। चौथे कालमें गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, मोक्ष पांचों ल्याणकोंमें पुजाको प्राप्त ऐसे चौवीस तीर्थकर होते हैं। इनकेसिबाय कितने ही महात्मा अपनी काललब्धिके वलसे अतीन्द्रिय सुखको भोगते हुए निर्वाणको प्राप्त होते हैं। उन सर्वही निर्वाण प्राप्त सिद्धोंको हम नमन करते हैं। कितने ही महात्मा सम्यक्तपूर्वक महाव्रतोंको या देशवतोंको पालकर पहले स्वर्गसे लेकर सर्वार्थसिद्धि पर्यंत जाते हैं। कितने ही द्रव्यलिंगी मुनि चारित्रको पालकर सम्यक्तके विना मिथ्यादृष्टी होते हुए भी पुण्य बांधकर नौग्रैवेयिक पर्यन्त जाते है। कितने ही सम्यक्त व व्रत दोनोंसे रहित होनेपर भी भद्रपरिणामी पात्र दान करके भोगभूमिमें जाकर जन्म लेते हैं। कितने ही पहले तीर्थंच व मनुष्य मायु बांधकर पीछे सम्यग्दर्शनको पाते हैं और पात्रदानसे भोगभूमिमें जन्म लेते हैं। कितने ही भोगोंमें मासक्त रहते हैं, प्राणियोंपर दयासे वर्ताव नहीं करते हैं, धर्मसे विमुख रहते हैं, दुष्टभाव रखते हैं, वे नर्क में जाकर दुःख भोगते हैं। मानवोंको दुष्टकर्म- पापकर्मका त्याग अवश्य करना चाहिये । क्योंकि पापका बन्ध होनेसे उसका कटुक फल भोगना पडेगा। जो नर जन्म व धर्म साधनेयोग्य सर्व उचित सामग्री पाकर भी धर्मसेवन नहीं करते हैं उनका यह सर्व योग्य समागम वृथा चला जाता है। फिर ऐसा नरजन्मका उत्तम धर्म साधन योग्य समागम मिलना बहुत कठिन है।
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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