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________________ चतुर्थ माग। (२८५ ) - हनुमान-आप इस बात से निश्चिन्त रहिये । विभीषण धर्मात्मा पुरुष है । उसे रावण का व्यवहार पसन्द नहीं आया होगा इसी लिये वो न्याय मार्ग पर आपको सहायता देना चाहता है। मालूम होता है रावण ने उसका अपमान किया है। दृत-( आकर ) महाराज श्री रामचन्द्रजी की सब मित्रों सहित जय हो। राम----कहो दूत ! क्या समाचार लाये हो ? दूत- महाराज मैं विभीषण का दूत हूं। जिस समय विभीषम रावण को समझा रहे थे उस समय रावण को क्रोध आया विभीषण ने अपमानित होकर तीस अक्षौहिणी सेना लेकर आपको सहायता देने का संकल्प कर लिया है। क्योंकि वह समझते हैं कि यदि न्याय मार्ग पर हो और शन भी हो तो उसका साथ देना चाहिये । आप संशय रहित होकर मुझे आज्ञा दीजिये । मैं उन्हें आपके सन्मुख लाऊं। राम-अवश्य, में उनसे मिलने के लिये बहुत इच्छुक हूं। दूत-मैं अभी उन्हें आपके पास भेजता हूं। (चला जाता है) सुग्रीव-मुझे निश्चय है कि हमारी युद्ध में अवश्य जीत . होगी । क्यों कि प्रथम कारण तो हम न्याय पक्ष पर हैं। दुसरा
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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