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________________ ( २८४) श्री जैन नाटकीय रामायण | सब लोग उनका उपचार करते हैं। ) हा ! सीते तु कभी मुझसे अलग नहीं रही । इस समय तेरी क्या अवस्था होगी। लक्ष्मण-भाई साहब! धैर्य धारण कीजिये। माता सीता को लाने का उपाय कीजिये। भामंडल-( आकर ) श्रीरामचन्द्रजी को मेरा प्रणाम ! राम-( बड़े हर्ष से) प्रिय भामंडल ! आओ, प्रायो, मैं तुम्हारी ही वाट देखता था। ( दोनों गले मिलते हैं । __भामंडल-प्रियवर मुझे सब वृत्तान्त मालूम होगया है। रावण को मैं इस पृथ्वी से मिटा दूंगा । अपनी बहन के बदले उसके प्राणों का दहन करूंगा। हा बहन, तुम किस प्रकार उस स्थान पर अपना जीवन चलाती होंगी ? तुम्हारे जैसी सती पर ये आपत्ती कहां से टूट पड़ी। दूत--(आकर ) महाराज श्रीरामचन्द्रजी की जय हो । विभीषण का दूत आपसे मिलना चाहता है। राम--उसे मेरे समीप मेजो। ( दूत जाता है) लक्ष्मण--भाई साहब मुझे इसमें थोड़ा सन्देह मालूम होता है। कहीं विभीषण राजनीती तो नहीं चल रहा है। कहीं वो हमसे कपट तो नहीं करेगा। .
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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