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________________ ( २०० ) श्री जैननाटकीय रामायण - दूत--(आकर) श्री रामचन्द्रजी की और सीताजी की जयहो। सीता-कहो दृत क्या समाचार लाये हो ? दूत-मैं ऐसा समाचार लाया हूं जो अभी तक कोई नहीं लाया होगा। सीता-वह क्या शीघ्र कहो ? दूत-श्रापके भाई........... सीता-मेरा माई ! मेरा भाई कहां हैं . तु मेरी हंसी क्यों उड़ाता है उसे तो जन्मते ही कोई हर ले गया है । वह अब कहां । हाय भाई....."( रोने लगती है ) दूत-श्रापके भाई आपसे मिलने आ रहे हैं। वह एक विद्याधर के द्वारा पाले गये हैं। उनका नाम भामण्डल है, उन्हें जाती म्मरण हुआ है । आप हर्ष मनाइये ।। सीता-कहां है ! कहां है !! कहां है !!! ( चारों तरफ देखती है, भामण्डल को आते देख उससे चिपट जाती है।) भाई तुम अब तक कहां रहे ? मुझे क्यों नहीं मिले ? माता तुम्हारे लिये रात दिन रोती हैं। (गले चिपटकर रोने लगती है, भामण्डल भी रोने लगता है) भामण्डल-हाय कर्मों की गती विचित्र है। ऐसी बहन से मैं अब तक न मिल सका वहन ! तुम रोती क्यों हो ! खुशी मनाओ । देखो सामने तुम्हारे भर्तार रामचन्द्रजी खड़े हैं । हघर
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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