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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियां बारा हैं। वैसे २ उनकी यह पुरानी भ्रामक मान्यता दूर होती जा रही है और वे जैनधर्म की मौलिकता एवं महोनता से प्रभावित होते जाते हैं। जैनधर्म की प्राचीनता पहले सिद्ध की चुकी जा है । यहाँ यह बताया जाता है कि जैनधर्म और वेदधर्म में क्या २ समानताएँ है और दोनों धर्मों में मौलिक भेद क्या ... सदियों नहीं, हजारों वर्षों से एक दूसरे के सम्पर्क में रहने के कारण जैन और वेदानुयायी सम्प्रदायों के सामाजिक और दैनिक जीवन में बहुत कुछ समानता दृष्टिगोचर होती है। जैन और अन्य हिन्दु कहे जाने वाले लोगों के रीति रिवाज और जीवन व्यवहार एक दूसरे से इतने हिलमिल गये हैं कि धार्मिक भेद होने पर भी उनमें कोई विशेष भेद नहीं मालूम होता । इसी लिए जैन और हिन्दु में मोटी दृष्टि से भेद दिखाई नहीं देता। कतिपय जैन, जनगणना में धर्म के खाने में अपने आपको हिन्दु लिखाते है या गणना करने वाले जैनों को हिन्दु मानकर अपने आप ही हिन्दुधर्मी' लिख लेते हैं । इसका कारण यह है कि दोनों में सामाजिक और व्यावहारिक सेमानता आगई है। वास्तव में जिसे आजकल हिन्दुधर्म कहा जाता है वह वधर्म है । यदि हिन्दु शब्द से धर्म का ही ग्रहण हो तब तो जैन स्पष्टरूप से हिन्दुओं से अलग है क्यों के उनके धर्म में और वेदधर्म में गहरा मौलिक भेद है । यदि हिन्दु शब्द से राष्ट्र का या भारतीय संस्कृति का अर्थ है तो निस्संदेह जैन हिन्दु है । सामाजिक और दैनिक जीवन व्यवहार के पारस्परिक प्रभाव से प्रभावित होने पर भी धार्मिक सिद्धान्तों का भेद ज्यों का त्यों बना रहा है। वैदिक ( ब्राह्मण ) धर्म और जैन धर्म के सिद्धान्तों के मूल में ही गहरा अन्तर है । जैन सिद्धान्त साम्य के आदर्श पर आश्रित है जब कि ब्रह्मरण धम के सिद्धान्त वैषम्य की भूमिका पर । जैनधर्म यह मानता है कि प्रत्येक आत्मा तात्विक दृष्टि से समान है। चाहे पृथ्वीगत हो, जलगत या वनस्पति गत हो, या कीट-पतंग पशु-पक्षी रूप हो या मानव रूप हो, प्रत्येक आत्मा समान है । सूक्ष्म सूक्ष्म आत्मा को भी सुख प्रिय है और दुःख अप्रिय है अतएव प्राणी मात्र को आत्मतुल्य समझकर उसकी हिंसा से निवृत्त होना चाहिए.। आत्म समानता के सिद्धान्त को जीवन-व्यवहार में उतारने के
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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