SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 691
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-गौरव-स्मृतियां 亲表手表去李不太素水六示宋冬案学案+ 学未來。 ५८ . :11 .. ... ... ' ' ." . . . R ... A ...... . .... Manminopmc... की १६४६ में की। अ०भा० संस्कृत महासम्मेलन तृतीय अधिवेशन आगरा के : स्वागताध्यक्ष एवं प्रान्तीय पेशरक्षा सम्मेलन के द्वितीय अधिवेशन फर्रुखाबाद के । सभापति । जातीय सेवा में भी आप अग्रेसर रहे हैं । आप अ०भा० श्रोसपाल महासम्मेलन के संस्थापकों में हैं । सम्मेलन के द्वितीय अधिवेशन के नाप सभापति रहे । भारत जैन महा मंडल के भी आप सभापति रहे। . . . . . . .:: .. * सेठ रतनलालजी जैन, आगरा . . : :: :: .:. - आप साहित्य प्रेमी, समाज सेवक एवं चतुर व्यवसायी है । सन् २६ से से राष्ट्रीय कार्यों में भाग लेना शुरु किया '४२ में जेल यात्रा की. नव.सन्देश एवं: निराला पत्र के प्रकाशक भी रहे । आप . ही के उद्योग से." श्री सन्मतज्ञिान पीठ" का प्रकाशन कार्य सुचारू रूप से हो रहा है। "आखिल भारत वर्षीय श्वेताम्बर .... स्थानक वासी जैन मण्डल" बम्बई के आप उत्तर प्रदेश की ओर से प्रतिनिधि हैं। "श्री राजेन्द्र प्रकाशन मन्दिर" के भी संस्थापक हैं । यहां से साहित्य की आदर्श रुप से सेवा हो रही है। अभी आगग म्युनिसिपल के कमिश्नर एवं नगर कॉग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष हैं। ... भिक्कामल छोटेलाल' नामक आप की यह फर्म लोहे की प्रमुख विक्रेता है। ★मेसर्स माधोलाल चिरन्जीलाल जैन-मुज्जफरनगर ( उत्तर प्रदेश) भिवानी निवासी सेठ माधोलालजी बड़जात्या ने ६५ वर्ष पूर्व इस फर्म की स्थापना की थी। आप ही के सद् प्रयत्न.से. फर्म की विशेष उन्नति हुई। श्राप श्री जैन सनातन.सिख मेन चेम्बर मुजफ्फर नगर के चेयरमेन भी रह चके है। सं०. १९८६ में आप स्वर्गवासी हुए। के सवालक श्री माधौलालजी के पुत्र फलचन्दजी पर्व वैजनाथजी बड़ी योग्यता पूर्वक काम कर रहे है श्री माधोलालली के ज्येष्ठ पुत्र भी चिरंजीलालजी सन् १६४६ में स्वर्गवासी हुए। श्राप बड़े ही धर्मनिष्ठ एवं परोपकारी महानुभाव थे। श्री सेठ फूलचन्दजी एवं वैजनाथजी उदार हृदय के धर्म प्रेमी एवं शिक्षा प्रेमी महानुभाष है। आप लोगों की ओर से नई मन्डी मुजपर नगर में एक . . . . ASSETT . . .: - --
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy