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________________ जैन-गौरव-स्मृतिया, Roymuta स्ट . पूज्य श्री.मंगल ऋषि जी महाराज,-लुधियाना . . . : . आयुर्वेद के प्रकाण्ड पण्डित एवं सफल चिकित्सक भी पृज्य महताय ऋषिजी ने अपने अगाध ज्ञान से मालेर कोटला एवं लुधियाना में आदर्श जन सेवा से अतुल सम्पत्ति उपार्जित कर मालेर कोटला में नेमीनाथ भगवान का मन्दिर अपने कर कमलों से बनाया एवं लुधियान में आपने आराधना के लिए मन्दिर बनवाया और जन हित के लिए जैन धर्म शाला बनवाई जो "पज्यों की सराय" के नाम से प्रसिद्ध है। आपके सुशिष्य पूज्य मोहन ऋपिजी तथा महेन्द्र ऋपिजी आयर्वेद के अच्छे विद्वान है। आपके सतत प्रयत्न से लुधियाना तथा मालेर कोटला में धर्मार्थ औषधालय खोले गए है। महाराजा फरीद कोर ने 'सालम' सिक ग्राम आपको भेट किया इसी प्रकार मालेर कोटला के नवाव ने भी ४००बीघा भूमि भेंट की। वर्तमान में श्री मंगल ऋपि जी महाराज हैं। आपका जन्म सं० १९६१ का है आप भी श्रायर्वेद के मर्मज्ञ विद्वान है और अपनी सफल चिकित्सा के द्वारा जन सेवा कर रहे है। आपका श्रीपधालय आधुनिक उपकरगां से सुसज्जित है।यपि रसायन और "संग्रहणी रिपु" पेटेण्ट औषधियें है जो समग्रभारत में विकती है। सेठ रोशनलालजी कोचर, अमृतसर म सं० १६५१ । श्राप चतुर व्यवसायी और दयालु सज्जन है । यापने "कोचर टैक्स टायल बुलन मिल्स" स्थापित किया। जिसमें गर्म शाल दशाले एवं सिल्क का कपड़ा तैयार होता है। धार्मिक कार्यों में आप अग्रसर होकर काम करते हैं । स्थानीय दादावाड़ी के मपूर्ण व्यय में से प्राधा व्यय प्रापने अपनी ओर से प्रदान किया। नन्दलालजी अभयकुमारजी कुमारी राजेंद्र कुमारजी तथा धनपत कुमारजी नामक पाँच पुत्र है । अनंतलालजी के जैगिंद्रलालजी नामक पत्र है । श्रीअनंतलाल मिलनसार और उत्साही युवक शिवचंद रोशन"लाल नामक फर्म से भापका व्यवसाय होता। शाम्बा कलकते में एम कुमार न०१७ पगियापटी में भी बह गर्म शाल दशाली की थोक बंध व्यापार होता है।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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