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________________ जैन-गौरव-स्मृतियाँ NEHAPA जुगराजजी बाल्यावस्था में ही “जलगाँव निवासी" "प्रतापमल बुंधमल" के यह गोद चले आए । साधारण शिक्षा प्राप्त करके आप व्यवसाय में लग गये व्यापारिक बुद्धि होने से साधारण अवस्था से लाखों के अधिपति हो गए एवं अपन चमत्कारिक बुद्धि से सफल व्यवसायियों में गिने जाने लगे । आपने अपने ज्येष्ट भ्राता शिवराजजी को भी यहां बुला लिया एवं व्यवसाय प्रवृत्त हो गये। .... श्री सेठ जुगराजजी के पुत्र श्री भंवरलालजी व्यवहार कुशल, होनहार एवं उदार युवक हैं। छोटी अवस्था में ही आपने सारे व्यवसाय को संभाल लिया और कुशलता पूर्वक संचालन कर रहे हैं। आपके बन्सीलालजी और भागचन्दजी नामक छोटे भाई और कमलाकुमारी नामक एक बहन है । शिवराजजी के जवाहरलालजी पुखराजजी और सोहनलालजी नामक तीन पुत्र हैं। . . . . . . .. ... श्री जवाहरलालजी प्रगतिशील विचारों के प्रतिभाशाली श्री भंवरलालजी . युवक हैं तथा श्री भंवरलालजी के साथ योग्यता पूर्वक, व्यव साय को संभालते हैं । तथा खदर पहिनते हैं। , .. ... ...., यह परिवार सामाजिक एवं राष्ट्रीय कार्यों में उत्साह पूर्वक भाग लेता है। धार्मिक भावना भी स्तुत्य है । जलगांव के अतिरिक्त एलीचपुर चालीस गांव, इन्दौर आदि स्थानों में आपकी दुकाने हैं। खानदेश की प्रसिद्ध फर्मों में आपकी फर्म भी एक है। . . . . ...... ... *सेठ गंभीरमलजी लक्ष्मणदासजी श्री श्रीमाल, जलगांवः-- ... इस फर्म के वर्तमान मालिक सेठ गंभीरमलजी श्री श्रीमाल हैं । श्राप स्थानकवासी ओसवाल जैन है। .. . . सेठ पृथ्वीराजजी, मुलतानमलजी एवं जीतमलजी नामक ३ भाई मारवाड़ तिंवरी से व्यापारार्थ यहां पधारे। सं० १९२० में जलगांव में कपड़े की दुकान स्थापित की। आप सज्जन क्रमशः संवत १६३५, १६४० और १६५० में स्वर्गवासी. हवे ! इन तोनों भाइयों के स्वर्गवासी होने के पश्चात सेठ मुलतानमलजी के पत्र . . सेठ.लक्ष्मणदासजी उपरोक्त कारोबार संभालते रहे। . सेठ लक्ष्मणदासजी-जन्म ता० १७-१३-१८७७ ई० में तीवरी में हुआ। संवत् १६७० में अपना निजी व्यापार ,सेठ लक्ष्मणदास मुलतानमल' के नाम से . . शुरू किया जिसमें बैंकिंग और कृषि का व्यापार वहुत जोरदार था । आपने जल गांव में बहुत नाम कमाया और बड़े सेठ के नाम से पहचाने जाने लगे। सिकंदरा . बाद में स्थानकवासी ओसवाल जैन कान्फ्रेस हुई उसके सभापति पदपर आपको
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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