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________________ NE. Mara BIRHARE जैन-गौरव-स्मृतियाँ सेठ भागचन्दजी-आपने अपने पूर्वजों के गौरव को न केवल पुष्ट ही किया बल्कि चौगुना बढ़ाया है । लक्ष्मी और विद्या का सामञ्जस्य आप में है । जनसेवा के प्रत्येक सार्वजनिक काम में आपका पूर्ण सक्रिय सहयोग रहता है । इस तरह आप अजमेर के एक विशिष्ट लोकप्रिय पुरुष हैं। सादगी सौजन्यता उदारता तथा विद्याप्रेम आप में प्रकृतिप्रदत्त सद्गुण हैं। आपका जन्म ११ नवम्बर १६०४ को हुआ। गवर्नमेंट हाईस्कूल में आपका शिक्षण हुअा। आपको बाल्यकाल से ही सदा नवीनज्ञान प्राप्त करने साहित्य संग्रह करने तथा धार्मिक वृत्ति में लीन रहने की मचि रही है। इन्हीं सद्प्रवृत्तियों के विकास से आज आप अ०भा० दिगम्बर जैनमहासभा द्वारा धर्मवीर-दानवीर-उपाधि से तथा श्री अ०भा० खंडेलवाल जैनमहासभा द्वारा प्रदत्त 'जाति शिरोमणी' पदवी से विभूपित है। भारत सरकार की ओर से रायबहादुर, सर, केष्टीन, प्रो० वी० ई० श्रादि उपाधियों द्वारा आप सम्मानित किये गये हैं सन १६६५ से १६४५ तक आप केन्द्रीय लेजिसलेटिव असेम्बली के माननीय सदस्य रहे है । जोधपुर नरेश ने स्वर्ण और ताजीम प्रदान कर आपको सम्मानित किया है। किशनगढ़ स्टेट की ओर से आपको ताजीम और सोना प्रदान किया गया है तथा राज्य की ओर से आप को 'राज्यरत्न' की उपाधि से विभूपित किया गया। आपने पूज्य पिता श्री के स्मृति में-श्री टीकमचन्द जैनहाईस्कूल की .:::., स्थापना कर अपूर्व विद्याप्रेम का परिचय दिया है। श्री भाग्य मातेश्वरी जैनकन्यापाठशाला भी श्रापके सफल संचालन से शिनगा क्षेत्र में श्रच्या कार्य कर रही है। - ६. 4
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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