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________________ ग्रन्थ के माननीय सहायक रायबहादुर सर सेठ भागचन्दजी सोनी, अजमेर आपका परिवार अपनी धर्मनिष्ठा, उदारता, समाजप्रेम तथा धन. सम्पन्नता के लिए न केवल जैनसमाज में ही वरन् भारत के प्रतिष्ठित : प्रमुख परिवारों में से हैं । आप खंडेलवालजातीय दिगम्बर जैनधर्मावलम्बी सज्जन है। इसी परिवार के धर्मनिष्ट सेठ जवाहरमल जी ने सं० १६१२ में दि० जैन चैत्यालय का निर्माण कराया जो एक दर्शनीय स्थान है । आपके तीनपुत्र हुए-सेठ गंभीरमलजा, मूलचंदजी तथा सुगनचंदजी। सेठ मूलचंदजी-आपकी अपार धर्मनिष्ठा ने इस परिवार को भार विख्यात बनाया । अजमेर का सर्वश्रेष्ठ दर्शनीय स्थान-सोनीजी की नशिय करौली के पाषाण का अद्वितीय श्री दिगम्बरजैनसिद्धकूट चैत्यालय वि० सं० १६५२ में आपही ने बनवाया है । इसमें सब काम स्वर्ण का है । सन१८८२ में गवर्नमेंट ने आपको रायबहादुर की पदवी प्रदान की । अपनी लोकप्रियता के कारण आप जीवन पर्यन्त अजमेर म्यूनिसिपलिटी के कमिश्नर तथा ऑनरेरी मजिस्ट्रेट भी रहे। आपने कलकत्ता, वम्बई, आगरा, ग्वालियर, जयपुर, भरतपुर आदि में अपनी कोठियां स्थापित कर व्यापार विस्तार भी खूब किया । गवर्नमेंट ने भी नीमच छावनी, गवालियर, जयपुर, भरतपुर, धौलपुर करौली आदि के खजाने आपके सिपुर्द किये। वि० सं० १६५८ आषाढ शुक्ला २ को आपका देहावसान हुआ । आपके सुपुत्र सेठ नेमीचन्दजी ने भी.अच्छी ख्याति प्राप्त की थी। - स्व० सेठ टीकमचन्दजी-आप नेमीचंदजी के सुपुत्र थे । सन् १९१९ में भारतसरकार ने आपको भी रायबहादुर की पदवी से विभूषित किया। श्रापको स्व० जयपुर नरेश व ईडर नरेश ने स्वर्ण कटक तथा जोधपुर नरेश ने ताजीम वक्ष कर राज्य सम्मानित किया था । आपने अपने पिता श्री के स्मरणार्थ-सेठ नेमीचन्द सोनी धर्मशाला करीब दो लाख रुपये की लागत से निर्माण कराई । आप भी म्यूनिसिपल कमिश्नर तथा ऑ० मजिस्ट्रेट रहे। आपके धर्मप्रेम से मुग्ध हो श्री अ० भा० दिगम्बर महासभा ने 'धर्मवीर की पदवी प्रदान की थी। आपके २ पुत्र हुए सेठ भागचंदजी तथा श्री दुलीचंद जी । श्री दुलीचंदजी का १६ वर्ष की अल्पायु में ही देहावसान हो गया। व्याप बड़े होनहार व सरलस्वभावी युवक थे। . ...
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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