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________________ ★ जैन-गौरव-स्मृतियाँ <><>< भीम के महामंत्री विमलशाह ने इस अनुपम कलाकृति का निर्माण कर अपना अमर कीर्त्तिस्तम्भ कायम किया है । यह सारा मन्दिर संगमरमर का बना हुआ है। इसमें १५०० कारीगरों और दो हजार मजदूरों ने तीन वर्ष तक लगातार काम किया था | पहाड़ पर हाथियों के द्वारा पत्थर ले जाये जाते थे । यांत्रिक साधनों के अभाव में भी इतने बड़े २ पत्थर और शिलाओं को इतनी ऊँचाई पर चढ़ाना साधारण बात नहीं है । इसके निर्माण में लगभग दो करोड़ रुपयों का व्यय हुआ है । मन्दिर की लम्बाई १४० फुट और चौड़ाई ६० फुट है । रंगमण्डप और स्तम्भों की कोणी इतनी अद्भुत है कि दर्शक दाँतों तले अंगुली दबाने लगजातेहैं । बेलवूढे, पुतलियाँ, हाथी, घोड़े आदि के इतने सुन्दर चित्रालेखन हैं कि ये सजीव से प्रतीत होते हैं । मुख्य मन्दिर के रंगमण्डप में = स्तम्भ लगे हुए हैं उनके मध्य के गुम्बज में इतनी सूक्ष्म कजापूर्ण कोरणी हैं कि कागज पर भी उसकी प्रतिकृति बनाना अति परिश्रम - साध्य है । इस गुम्बज और स्तम्भों की समानता करने वाली संसार भर में कोई कलाकृति नहीं है । इस १ मन्दिर में तीर्थंकर देव के समवसरण, बारह परिषद्, व्याख्यान सभा के दृश्य, महाभारत के युद्ध प्रसंग, दीक्षामहोत्सव, आदि के विविध दृश्य आलेखित हैं । जिन्हें देखते २ आँखें थकती भी नहीं है। इसमें मूलनायक श्री ऋषभदेव स्वामी हैं । विक्रम सं. १०८ में धर्मोपरि के हाथ से विमल शाह ने इस मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई । विमलशाह के इस मन्दिर के ठीक सामने घोड़े पर उनकी मूर्ति है। इस घोड़े के आसपास सुन्दर दस हाथी हैं जिन्हें हास्तिशाला कहते हैं । कर्नल टॉड ने इस मन्दिर के सम्बन्ध में लिखा हैं कि "यह मन्दिर भारत भर में सर्वोत्तम है और ताजमहल के सिवाय और कोई स्थान इसकी समानता नहीं कर सकता है। फर्ग्युसन ने लिखा है कि इस मन्दिर में जो कि संगमरमर का बना हुआ है, अत्यन्त परिश्रम सहन करने वाली हिन्दुओं की टॉकी से फीते जैसे बारीकी के साथ ऐसी मनोहर श्राकृतियाँ बनाई गई हैं कि अत्यन्त कोशिश करने पर भी उनकी नकल कागज पर बनाने में समर्थ न हो सका ।" TKCATA(20) coco茶茶
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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