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________________ SSSSC+ जैन गौरव-स्मृतिया *SA वस्तुपाल तेजपाल का मन्दिर- लूणिगवसही:- विमलवसही में जो भाव्यता और कलापूर्णता है वही वस्तुपाल-तेजपाल के मन्दिर में भी विद्यमान है । इन महामात्य युगलबन्धुओं ने करोड़ों रुपये लगाकर इन कलाकृतियों का निर्माण करवाया है । इसमें मृलनायक श्री नेमिनाथ भगवान हैं। इस मृति की प्रतिष्ठा सं० १२८७ में की गई है। इस मन्दिर का नाम वस्तुपाल के बड़े भाई लण की स्मृति में लूणिगवसही रक्खा गया है । वस्तुपाल-तेजपाल ने यहाँ बावन जिनालय मन्दिर बनवाया है । मन्दिर के पीछे भाग में दस हाथी हैं जिनपर इस युगलबन्धु के कुटुस्त्रियों की मूर्तियाँ हैं। मन्दिर के रंगमण्डप में दाई ओर और वाई अोर संगमरमर के दो बड़े गोखड़े बने हुए है जिन्हें "देरानी-जेठानी के गोखड़े" कहते हैं । ये साधारण गोखा नहीं है किन्तु मुन्दर कारीगरी वाले दो छोटे २ मन्दिर जैसे हैं । मन्दिर की प्रदक्षिणा में दाई दीवार पर संगमरमर पर शकुनिका विहार का दृश्य आलो. कित है । लगवाही के बाहर दरवाजे की बाई और चबूतरे पर एक बड़ा कीर्तिस्तम्भ हैं । ऊपर का भाग अपुरा मालूम होता है । कीतिस्तम्भ क. नीचे एक सुरही का पत्थर है जिसमें बछड़े सहित गाय का चित्र है उसके र नीचे वि० सं० १५०६ का कुम्भाराणा का लेख है जिसमें लिखा है कि-" इन मन्दिरों की यात्रा के लिए आने वाले किसी भी यात्री से किसी प्रकार का कर या चौकी के बदले में कुछ भी मूल्य न लिया जाय ऐसी कुम्भाराणा की प्राज्ञा है।" लणगवसही में विविध कलापूर्ण भाव आलेखित हैं। खास करके देरागी-जेठानी के गौखड़, नव चौकी के मध्य का गुम्बज, रंगमण्डप का गुम्बज. रंगमण्डप की भमती में दाई और के गुम्बज में कृष्णाजन्म, कृष्णाक्रीडा, नौवी देवकुलिका के जुम्बज में द्वारिकानगरी और नेमिनाथ का सम.. बसरा, नमनाथ का बरात का , तीर्थरों के कल्याणक आदि दृश्य दश। नीग हैं। इसमें कुल ८ देवालिकाएँ हैं। ११६ गुम्बन हैं। ६३ नकाशा वाले और. : सादे गुम्बज है। स्तम्भसंख्या १३० हैं । श्राव के भव्य मन्दिर भारतीय कला के विश्वप्रसिद्ध उदाहरण है। भीमाशाह का मन्दिर पित्तलहर~ उक्त मन्दिरों के पास भीमाशाह ने एक मन्दिर बनवाया जो पित्तलहर कहाजाता है क्योंकि इसमें उन्होंने । Konkskskskskeko (५८८ keko kakkkkoike
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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