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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियां टू यहाँ इजारों मन्दिर विद्यमान थे। कहाजाता है कि ४४४ अर्हत-प्रासाद और LEE शैवमन्दिरों वाली इम नगरी में भीमराज से अपमानित हुया विमल ... कोतवाल राज्य करता था। यह नगरी बहुत विशाल थी। इसका एक दरवाजा . दत्ताणी गाँव तक पाया हुआ हुआ है जिसे तोड़ा का दरवाजा कहते है। दूसरा दरवाजा कीवरली के पास था । पेथड़शाह ने यहाँ जिनमन्दिर बँधवाया था। महामंत्री मुजाल ने चन्द्रावती तीर्थ की यात्रा की थी ऐसा उल्लेख मिलता है। तेजपाल की पत्नी अनुपमा देवी यहाँ के पौरवाड़ धरणीक की पुत्री थी । यहाँ के वर्तमान उपलब्ध भग्नावशेष ही इस नगरी की समृद्धि के सासी हैं। ध्वस्त मन्दिरों के पत्थर पालनपुर और सिरोही तक देखे जाते हैं। इसमें भारतीय कला के श्रेष्ठ नमूना रूप एक ही पत्थर में दोनों तरफ श्री जिनेश्वर देव की अदभुत कलामय सुशोभित मूर्ति है । इसे यत्यन्त समृद्ध और मन्दिरों से सुशोभित नगरी का अलाउद्दीनखिलजी के प्रचण्ड श्राक्रमण से दुखमय अन्त हुआ। अभी यहाँ छोटा सा गाँव मान रह गया है। श्राबू के जगप्रसिद्ध मन्दिर: आबू पहाड़ की विशेष प्रसिद्धि यहाँ के सुप्रसिद्ध कलामय जनमन्दिरों के कारण ही है । यह पहाड़ बारह मील लम्बा और ४ मील चौड़ा है। जमीन फी सतह से ३००० फुट ऊँचा और समुद्र की सतह से ४००० फुट ऊँचा है। यहाँ अभी पन्द्रह गाँव बसे हुए हैं । इनमें से देलवाडा, अचलगढ़ और अोरिया में जैनमन्दिर है। यहाँ का चढ़ाव अटारह मील का है। चारों तरफ पहाड़ियों और सघन वृतराजि काश्य बड़ा ही रमणीय लगता है । देलवाड़ा में वस्ती थोड़ी है परन्तु अदभुत कलामय जैनमन्दिरों के कारण यात्रियों के श्रावागमन से यहाँ सदा चहल पहल रहती है। देलवाड़ा के मुख्य मन्दिर और उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है:विमलवसही:--. . विमल मंत्रीश्वर का बनवाया हुआ यह महामन्दिर समस्त भारतवर्ष में शिल्पकता का सर्वोत्कृष्ट अपूर्व नमूना है। कलादेवी अपनी समम । सुषमा के साथ यहाँ प्रकट हुई हो, ऐसा आभास होने लगता है । गुर्जर नरेश ... Karkkakakakakak (४८६) Kakkkkkkke
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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