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________________ * जैन-गौरव -स्मृतियाँ ***★★★★★54k. Rim * जैनकला और कलाधाम * [जैनतीर्थस्थान] #* * * * * * * * * * साहित्य और कला संस्कृति के प्राणभूत तत्त्व होते हैं। इनके आधार पर संस्कृति फलती-फूलती है और चिरस्थायिनी बनती है । साहित्य की सृष्टि और सुरक्षा में जैनों ने जितना योगदान दिया है, कला के क्षेत्र में भी उनकी . उतनी ही विशिष्ट देन है । जैनों की कलाराधना से न केवल जैनसंस्कृति ही अपितु भारतीय संस्कृति भी जगमगा उठी है । जैनकला ने भारतीयकला पर ही नहीं बल्कि विश्वकला पर ही अपना अमिट प्रभाव डाला है। जैनों की स्थापत्यकला, मूर्ति निर्माणकला और चित्रकला का, फला के इतिहास. में अपना महत्वपूर्ण और विशिष्ट स्थान है । जैनों के विश्व प्रसिद्ध अव्यमन्दिर, उनकी लाक्षणिक प्रतिमाएँ और उनकी चित्रकला के आदर्श जैनजाति के . उत्कृष्ट कलाराधना के उज्ज्वल प्रतीक हैं।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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