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________________ जैन-गौरव-स्मृतियाँ*: . जैनश्रावक भंडारों की स्थापना में और ग्रन्थ लिखवाने में अपन द्रव्यराशि का सदुपयोग करते आये हैं। वस्तुपाल-तेजपाल ने क्रोड़ों रुपये लगाकर तीन बड़े २ भंडार स्थापित किये थे। प्रत्येक जैनसंघ के पास न्यूनाधिक रूप में शास्त्रभंडार होता ही है । भंडारों की इस परिपाटी के कारण भारतीयसाहित्य सुरक्षित रह सका है। इस परिपाटी के कारण लेखन-कला और चित्रकला को खूब प्रोत्साहन मिला है। मुद्रण का युग न होने पर भी उस काल में एक २ ग्रन्थ की सैकड़ों नकल कराई जाती थीं। जैनश्रावक इस कार्य में द्रव्य व्यय करने में ज्ञानाराधना और धर्माराधना मानते थे और अब भी मानते हैं। जैनमंडारों में केवल जैनसाहित्य ही नहीं बल्कि सब तरह का साहित्य रखा जाता था। इसलिए इन भंडारों से केवल जैनसाहित्य की ही नहीं बल्कि समस्त भारतीयसाहित्य की सुरक्षा हुई है। आज कितने ही ऐसे प्राचीन महत्वपूर्ण बौद्ध और वैदिक ग्रन्थ जैनभंडारों में मिले हैं जो अन्यत्र कहीं लभ्य नहीं हैं। मुसलमानी काल में जवकि धर्मान्ध यवनों ने साहित्य और मंदिरों को नष्ट करने पर कमर कसली थी और हजारों बहुमूल्य ग्रन्थों का विनाश कर दिया था उस समय भी जैनों ने अपनी दूरदर्शिता से भारतीयसाहित्य की सुरक्षा की। आज जो भी भारतीय प्राचीनसाहित्य उपलब्ध होता है उसका अधिकांश श्रेय जैनभंडारों और उसके संरक्षकों को है।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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