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________________ ह जैन-गौरव स्मृतियाँ * SS आजलधारी हेमचन्द्र:---- . ये मलधारी अभयदव के शिष्य थे । ये अत्यन्त प्रभावक व्याख्याता सिद्धराज जयसिंह इनके व्याख्यानों को बड़े ध्यान से सुनता था। और इनकी प्रेरणा से जैनधर्म के लिये उसने कई हितकारी कार्य किये थे । इनकी परम्परा में हुए राजशखर ने प्राकृत याश्रयवृत्ति (सं० १३८७ ) में लिखा है कि ये प्रदान्न नामक राजसचिन थे और अपनी चार स्त्रियों को छोड़ कर अभयदेव के शिष्य बने थे । ये आचार्य हेमचन्द्र बड़े विद्वान और "साहित्य निर्माता थे । इनके ग्रन्थों का प्रमागा लगभग एक लाख शोक का है। इनके ग्रन्थ इस प्रकार हैं: --विशेषावश्यक भाप्य की वृहदवृत्ति. आवश्यकटिप्पनक, अनुयोगद्वार वृत्ति, जीव समास वृत्ति, नंदीसूत्र टिपनक, शतकनामा कर्मग्रन्ध पर वृत्ति, उपदेश माला सटीक ( १४००० लोक ) भवभावना सटीक ( १३००० श्लोक ) प्रमाण । विशेषावश्यक भाष्य की वृहदवृत्ति में इनके सात सहायक थे-अभयकुमार गरिग, धनदेव, जिनभद्र, लक्ष्मण, विबुधचन्द्र आनन्द, श्री महत्तरा साध्वी और वीरमती गणिनी साध्वी । { श्री चन्द्रसुरि:---- ये मलधारी हेमचन्द्र के शिष्य थे । इन्होंन संग्रहणी रन और मुनिसुत्रत चरित्र (१०६६१ गाथा) की रचना की । हमचंद्र के दूसरे शिष्य विजयसिंह मूरि ने धर्मोपदेशमाला विवरण (१४४७१६ लोक प्रमागा) लिखा । हेमचन्द्र के तीसरे शिष्य विबुधचन्द्र ने 'यंत्रसमास नया चतुर्थ शिष्य लक्ष्मण गरणी ने 'सुपासनाद चरिय लिग्या । कवि श्रीपाल:---- सिद्धराज जयसिंह का विद्वात्मभा के सभापति कविराज श्रीपाल थे। ये परिवार वैश्य जैन थे। उन्होंने एक दिन में 'गचन पराजय नाम: महाप्रबन्ध बनाया जिससे सिराज ने उन्हें कांव की उपाधि दी थी। इनके अन्य मानलिंग सरोवर प्रशस्ति दुलर सरोवर प्रशस्ति, मद्रमाल प्रशस्ति, और आनन्दपुर प्रशस्ति है। ikekekkkkk( २०६kekakakakakakak
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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