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________________ * जैन-गौरव स्मृतियाँ * HARNAMANANDHARYANA स्तुति, आदि लगभग छोटे २ प्रकरण मन्थ लिखे हैं। ये प्रसिद्ध वादिदे सूरि के गुरु थे। .. ____ वादी देवसूरिः-इनका जन्म गुर्जरदेश के मदाहत ग्राम में प्राग्य, ( पोरवाड़) वणिक कुल में सं० ११४३. में हुआ था । सं० ११५२ में नौ वर की अवस्था में इन्होंने दीक्षा धारण की और ११७४ में आचार्य पद पर आरूढ हुए। ये आचार्य चादकुशल होने से वादी की उपाधि से सम्मानिन । हैं । सिद्धराज की सभा में इन्होंने दिगम्बराचार्य श्री कुमुदचन्द्र से शास्त्रा कर विजय प्राप्त की थी। सिद्धराज ने इन्हें जयपत्र और लक्ष स्वर्णमुद्रा तुष्टिदान देना चाहा परन्तु इन्होंने अस्वीकार कर दिया। महामंत्री आशुत्र । की सम्मति से सिद्धराज ने इस द्रव्य से जिनप्रसाद करवाया । ये प्राचा बड़े नैयायिक थे । इन्होंने न्यायशास्त्र का 'प्रमाणनयतत्वालोक' नामक सूत्रग्रन्थ लिखा और उस पर स्याद्वादरत्नाकर नामक वृहत्काय टीका लिखी । इसमें इन्होंने अपने समय तक : की समस्त दार्शनिक चंत्रिओं का संग्रह कर दिया है तथा अन्य वादियों की युक्तियों का सचोट उत्तर दिया । है । इसकी भापा काव्यमय और प्रासादक है। न्यायग्रन्थों में इसका। उम्चस्थान है । इनका स्वर्गवास सं० १२२६ में.( कुमारपाल के समय में ) हुआ। सिंह-व्याघ्रशिशु:---- वादीदेव के समकालीन आनन्दसूरि और अमरचन्द सूरी हुपं । ये नागेन्द्रगच्छ के महेन्द्रसूरी-शान्तिसूरि के शिष्य थे । बाल्यावस्था से ही वाद प्रवीण होने से तथा कई वादियों को वाद में पराजित करने से सिद्ध ज ने इन्हें क्रमशः 'व्याघ्रशिशुक' और 'सिंह शिशुक' की उपाधि दी थी। मरचन्द सूरी का सिद्धान्तार्णव ग्रन्थ था लेकिन वह उपलब्ध नहीं है। नीशचंद्र विद्याभूपण का अनुमान है कि तार्किक गंगेश उपाध्याय न ने तत्वचिन्तामणि ग्रन्थ में व्याप्ति के सिंह व्याघ्र-लक्षण में इन्ही दोनों उल्लेख किया हो। अानन्दसूरि के पट्टधर हरिभद्रसूरि को "कलिकाल । न" की उपाधि थी। इन्होंने तत्वप्रबोध आदि अनेकों ग्रन्या . चना की थी। K KKKORK(४२२) kkkkkkkkke
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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