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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियाँ शागम रूप में स्वीकार करती हैं। प्राचार्य कुन्द कुन्द का समय अभी निश्चित नहीं हो पाया है। विद्वानों में इनके समय के विपय में मतैक्य नहीं है। डा. ए. एन. उपाध्ये उनको ईसा की प्रथम शताब्दी में हुए मानते हैं जबकि मुनि कल्याणविजयजी उन्हें पाँचवी छठी शताब्दी से पूर्व नहीं मानते। गुणधर, पुष्पदन्त और भूतबलि आचार्य का समय विक्रम की दूसरी-तीसरी शताब्दी है। (२) प्राकृत साहित्य का मध्य और संस्कृत साहित्य . का उदयकाल ( विक्रम संवत् के प्रारम्भ से, सं. १००० तक) जैनाचायों ने सर्वतोमुखी साहित्य रचना से संस्कृत साहित्य को अति समद्ध बनाया है। उसकाल में चर्चित और प्रचलित प्रत्येक विषय पर जैनाचार्यों ने संस्कृतभाषा में साहित्यसृजन किया है । उसकी संक्षिप्त झांकी ही यहाँ अंकित की जाती है। संस्कृतसाहित्य का उल्लख करने से पूर्व उससे पहले के महत्वपूर्ण प्राकृतसाहित्य और उसके रचयिताओं का थोड़ासा सूचन करना आवश्यक है । इसके बाद संस्कृत-साहित्य की ओर दृष्टिपात करेंगे। परम्परा के अनुसार आर्य मंगु, वृद्धवादी, सिद्धसेन दिवाकर और पादलिप्त सूरि विक्रम राजा के समकालीन कहे जाते है । पादलिप्त सूरि ने तरंगवती नामक कथाग्रन्थ प्राकृत जैनमहाराष्ट्री भाषा में पादलिप्त सूरि रचापादलिप्त ने ज्योतिप् करण्डक (प्रकीर्णक) पर प्राकृत भापा में टीका लिखी है। तथा जैन नित्य कर्म, दीक्षा, आदि पर निर्वाण कालिका का नामक ग्रन्थ की संस्कृत में रचना की। आधुनिक विद्वान पादलिप्तसूरी का समय विक्रम की दूसरी सदी होने का अनुमान करते हैं। इस दूसरी और तीसरी सदी में दिगम्बर प्राचार्य गुणधर, पुष्पदंत,भूतबलि प्राचार्यों ने कपायपाहुड, पट्खण्डागम की रचना की। . . .
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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