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________________ * जैन गौरव-स्मतियाँ*NISK ___ डॉ. हर्मन जेकोबी ने जैनधर्म और उसके साहित्य के सम्बन्ध में खुब अन्वेषणा किया है । इस महापण्डित के अनवरत परिश्रम और प्रयत्नों से जैनधर्म के सम्बन्ध में फैली हुई भ्रान्तियों का निराकरण हुआ है । जैनागमों के अनुवाद और उनकी मीमांसा में इन विद्वान् का परिश्रम सराहनीय है। इन्होंने लिखा है कि-- ... . . .. "जैनों के आगम सूत्र Classical. संस्कृत साहित्य से अधिक प्राचीन हैं, तथा इन में कितनेक तो उत्तर बौद्धों ( महायानी ) के प्राचीन से प्राचीन ग्रन्थ के साथ समानता करने वाले हैं।" प्रो. हॉर्नेल ने उपासकदशाङ्ग का मूलपाठ संशोधित कर उसका अंग्रेजी अनुवाद किया है। वह उसकी उपयोगी प्रस्तावना. और नोंध सहित तथा अभयदेव की टीका समेत बिग्लिोथेका इंडिका बंगाल, कलकत्ता तरफ से सन् १८८५ में प्रकाशित हुआ है । श्री शुनिंग महोदय ने भी आचारांग आदि आगमों के संस्करण प्रकट किये हैं। जैनागम अत्यन्त गहन और विस्तृत हैं । इनके सम्बन्धमें विशेष अन्वेषण की आवश्यकता है। भारतीय और यूरोपीय विद्वानों ने अभी इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया है। आज के युग में इसकी अत्यन्त आवश्यकता है। यदि विद्वगद्ण चौद्ध ग्रन्थों की तरह जैनागमों पर भी लक्ष्य दें तो कई नवीन तथ्यों पर प्रकाश पड़ने की सम्भावना है। .. अब तक जिन आगमों का वर्णन किया गया है। वे श्वेताम्बर परम्परा को ही मान्य हैं। दिगम्बर सम्प्रदाय के मन्तव्य के अनुसार अंगादि आगम विच्छिन्न हो गये हैं। अतः यह परम्परा अंगों-विशेषकर दृष्टिवाद-के आधार बनाये ग्रन्थों को आगम रूप से स्वीकार करती है। आगम दिगम्बर सम्प्रदाय में पटखण्डागम, कषायपाहुड, और महाबन्ध हैं। के पागम . . षट्खण्डागम की रचना पुष्पदन्त और भूतबलि आचाया. ....... . . द्वारा की गई है। कषायपाहुड़ की रचना प्राचार्य गुणधर द्वारा हुई है। सहावन्ध के रचयिता आचार्य भूतबलि हैं। इसके अतिरिक्त यह सम्प्रदाय कुन्दकुन्द नाम के महाप्रभावकं याचार्य के द्वारा बनाये गये समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, अष्टपाहुड़, नियमसार आदि ग्रन्थों को Kekiokokkkok:(४०४).kkkkkkkkkkk
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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