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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियाँ *Se विमलसूरी: इन आचार्य ने प्रसिद्ध प्राकृत ग्रन्थ 'पडमचरियम्' ( पद्म चरित्र-जैन रामायण) की रचना की.। इस ग्रन्थ की रचना वीरात् ५३० विक्रम सं. ६० में होने का उल्लेख मूलग्रन्थ में मिलता है । तदपि इसकी रचना शैली और भाषा पर से हर्मन जेकोबी इसे चतुर्थ शताब्दी से अधिक प्राचीन नहीं बताते हैं। शिवशर्म सूरी: ये आचार्य प्रसिद्ध कर्म विषयक प्राकृत, ग्रन्थ "कम्मपयडी" के कर्ता हैं। इन्होंने शतक नामक कर्मग्रन्थ (प्राचीन छ कर्म ग्रन्थ में से पञ्चम ) की भी रचना की है। इन प्राचार्य का समय अनिश्चित है। इनके लिये विक्रम की तीसरी सदी का अनुमान किया जाता है। . उमास्वाति . . . जैनवाङमय में सर्वप्रथम प्राञ्जल संस्कृत के लेखक, वाचक उमास्वाति ने संस्कृत भाषा में जैनतत्वज्ञान का संदोहन रूप तत्वार्थाधिगम सूत्र की रचना की । इस ग्रन्थ पर भाष्य का निर्माण किया । उसकी प्रशस्ति से प्रतीत होती है कि ये उच्चनागरी शाखा के थे, न्यग्रोधिका ग्राम में पैदा हुए थे। इनकी माता वत्सगोत्र की थी, नाम उमा था। इनके पिता कोभीपणी गोत्र के थे और नाम स्वाति था । उन्होंने कुसुमपुर में यह ग्रन्थ रचा । ये वाचकमुख्य शिव श्री के प्रशिष्य और ग्यारह अंग के ज्ञाता घोषनंदि मुनि के शिष्य थे। .. उमास्त्राति का समय भी विवादास्पद और अनिश्चित है । कोई इन्हें विक्रम संवत् पूर्व का मानते हैं, कोई विक्रम संवत् १ से ८५ के बीच का मानते हैं तथा कोई विक्रम की तीसरी चौथी सदी का मानते हैं .. इन महान आचार्य का श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में समान रूप से सन्मान है । इस महाग्रन्थ के ऊपर दोनों परम्परामों में अनेक टीकाओं की रचना हुई है । एक दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि इस ग्रन्थ को केन्द्र मान कर जैनदार्शनिकसाहित्य को उत्तरवर्ती जैन विद्वानों ने पर्याप्त पल्लवित किया है । छठी शताब्दी के दिगम्बराचार्य पूज्यपाद - -AET
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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