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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियां : सा भी हो) जैनधर्म का अस्तित्व था। रामचन्द्रजी के काल में जैनधर्म का अस्तित्व सिध्द हो जाने पर वेदव्यास के समय में उसका अस्तित्व सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती है । तदपि वेद व्यास ने अपने ब्रह्म सूत्र । नैकस्मिन्न संभवात् '' कहकर जैन दर्शन के स्याद्वाद सिध्दान्त पर आक्षेप किया है। अगर उस समय जैन दर्शन का स्याद्वाद सिध्दान्त विकसित न हुआ होता तो वेद व्यास उस पर लेखनी नहीं उठाते । यद्यिप वेदव्यास ने स्याद्वाद के जिस रूप पर आक्षेप किया है वह स्याद्वाद का शुध्द रूप नहींविकृत रूप है। तदर्पि इससे यह तो भलीभांति सिद्ध हो जाता है कि वेद व्यास से समय में जैन दर्शन का मौलिक सिध्दान्त स्याद्वाद प्रचलित था । रामायण महा भारत से जैनधर्म का अस्तित्व सिध्द हो जाने पर अव पुराणों को देखना चाहिए। .. अठारह पुराण महर्षि व्यास के द्वारा रचित माने जाते हैं। ये व्यास महर्षि महाभारत के समयवर्ती बतलाये जाते हैं। चाहे कुछ भी हो हमें यह देखना है कि पुराण इस विषय में क्या कहते हैं ? शिव पुराण में रिषभनाथ भगवान् का उल्लेख इस प्रकार से किया गया है:- . ... . ' कैलाशे पर्वते रम्ये वृषभोऽयं जिनेश्वरः । चकार स्वावतारश्च सर्वज्ञः सर्वगः शिवः ।। इसका अर्थ यह है कि-केवल ज्ञान द्वारा सर्व व्यापी, कल्याण स्वरूप, सर्व ज्ञान जिनेश्वर रिपभदेव सुन्दर कैलाश पर्वत पर उतरे। इसमें आया हुआ 'वृषभ' और 'जिनेश्वर' शब्द जैनधर्म को सिध्द करते हैं क्योंकि 'जिन' और 'अर्हत्' शब्द जैन तीर्थङ्कर के लिवे रूढ है । ब्रह्माण्ड पुराण में इस प्रकार लिखा है: "नाभिस्त्वजनयत्पुत्रं . मरुदेव्यां मनोहरम् : ... . . / रिषभं क्षत्रियज्येष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूर्वजम् ।। रिषभाद् भरतो. जज्ञे वीरः पुत्रशताग्रजो-। ऽभिपिञ्चय भरतं राज्ये महाप्रव्रज्यामास्थितः ॥" "इह हि इक्ष्वाकुकुल वंशोद् भवेन नाभिसुतेन मरुदेव्याः नन्दनेन - महादेवेन रिषभेण दशप्रकारो धर्मः स्वयमेवाचीर्णः केवल ज्ञानलाभाच्च प्रवत्तितः” । . . . . . . . . ..
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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