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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियां कि जैनधर्म का अस्तित्व यास्क के समय से भी बहुत पहले था। शाक टायन । का नाम रिग्वेद की प्रति शाखाओं में और यजुर्वेद में भी आता है। . शाकटायन जैन थे, इस बात का प्रमाण ढढने के लिए अन्यत्र जाने, की आवश्यकता नहीं। उनका रचित व्याकरण ही इस बात को सिद्ध करता है। वे अपने व्याकरण के बाद के अन्त में लिखते हैं :- "महा श्रमण संघाधि पतेः श्रत केवलि देशीयाचार्यस्य शाकाटायनस्य कृतौ”। उक्त लेख में आये हुए 'महा श्रमणसंघ' और श्रृंत के वलि शब्द जैनों के पारिसाषिक घरेलू शब्द हैं। इनसे निर्विवाद सिध्द होता है कि शाकटायन जैन थे। इस बात से यह सिद्ध हो जाता है कि पाणिनि और यास्क के पहले भी जैन धर्म विद्यमान था। वैदिक धर्म के प्राचीन ग्रन्थों से भी यह सिद्ध होता है कि उस समय भी जैनधर्म का अस्तित्व था। वेदधर्म के सर्वमान्य रामायण और महो भारत में भी जैनधर्म का उल्लख पाया जाता है। रामचन्द्र के कुल पुरोहित वशिष्टजी के बनाये हुए योगवशिष्ट ग्रन्थ में ऐसा उल्लेख है :___ नाहं रामो न मे वाच्छा भावेषु च न मे मनः । . . शान्तिमास्थातुमिच्छामि स्वात्मन्येव जिनो यथा॥ भावार्थः- रामचन्द्रजी कहते हैं कि मैं राम नहीं हूँ, मुझे किसी पदार्थ की इच्छा नहीं है; मैं जिनदेव के समान अपनी आत्मा में ही शान्ति स्थापित करना चाहता हूँ। इससे स्पष्ट प्रकट होता है कि रामचन्द्रजी के समय में जैनधर्म और जैनतीर्थङ्कर का अस्तित्व था । जैनधर्मानुसार बीसवें तीर्थङ्कर श्री मुनिसुव्रत स्वामी के समय में रामचन्द्र जी का होना सिद्ध है। महाभारत के आदि पर्व के तृतीय अध्याय में २३ और २६ वें श्लोक में एक जैन मुनि का उल्लेख है। शान्ति पर्व ( मोक्ष धर्म अध्याय २३६ श्लोक ६) में जैनों के सुप्रद्धि सप्तभंगी नय का वर्णन हैं। आधुनिक कतिपय इतिहासकारों की ऐसी मान्यता है ( यद्यपि जैनों को यह स्वीकृत नहीं) कि महाभारत ईसा से तीन हजार वर्ष पहले तैयार " हुआ था और रामचन्द्र जी महाभारत से एक हजार वर्ष पहले विद्यमान थे। इस पर से कहा जा सकता है कि रामचन्द्र जी के समय में ( चाहे वह कौन ., ARYANAMROMAN RSXXERCENESSPAPERCEX
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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