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________________ * जैन- गौरव स्मृतियां ★ • अर्थात्ः नाभिराजा और मरुदेवी रानी से मनोहर, क्षत्रियवंश का पूर्वज 'रिषस' नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । रिषभनाथ के सौ पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र शूरवीर 'भरत' हुआ । विभदेव भरत को राज्यारूढ़ करके प्रत्रर्जित होगये । इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न नाभिराजा और मरुदेवी के पुत्र रिषभ ने क्षमा मार्दव आदि दस प्रकार का धर्म स्वयं धारण किया और केवल ज्ञान पाकर उसका प्रचार किया । स्कन्द पुराण में भी लिखा है: • आदित्यप्रमुखाः सर्वे बध्दाञ्जलय ईशं । ध्यायन्ति भावतो नित्यं यदङ्गियुगनीरजं || परमात्मानमात्मानं लसत्केवलानिर्मलम् | निरञ्जननिराकारं रिषभन्तुमहा रिषिम् " भावार्थ:- रिषमदेव, परमात्मा, केवल ज्ञानी, निरञ्जन, निराकार, और महर्षि हैं। ऐसे रिषभदेव के चरण युगल का आदित्य आदि सूर-नर भावपूर्वक अञ्जलि जोड़कर ध्यान करते हैं । नागपुराण में इस प्रकार उल्लेख है: अकारादि हकारान्तं मूर्धाधोरेफ संयुतम् । नादविन्दुकलाक्रान्तं चन्द्रमण्डलसन्निभम् ॥ एतद्दवि परं तत्त्वं यो विजानाति तत्त्वतः । संसारबन्धनं छित्वा स गच्छेत् परमां गतिम् ॥ अर्थात् जिसका प्रथम अक्षर 'अ' और अन्तिम अक्षर 'ह' है, जिसके ऊपर आधारे तथा चन्द्रविन्दु विराजमान है ऐसे "ह" को जो सच्चे रूप में जान लेता है, वह संसार के बन्धन को काटकर मोक्ष को प्राप्त करता है । बहुमान्य मनुस्मृति में मनु ने कहा है: मरुदेवी च नाभिश्च भरते कुलसत्तमाः । अष्टम मरुदेव्यां तु नाभे जति उरुक्रमः ॥ दर्शयन् वर्त्म वीराणां सुरासुरनमस्कृतः । नीतित्रितयकर्त्ता यो युगादौ प्रथमो जिनः ॥ भावार्थ - इस भारतवर्ष में 'नाभिराय' नाम के कुलकर हुए । उन नाभिराय के मरुदेवी के उदर से मोक्ष माग को दिखाने वाले, सुर-असुर EXXXXXXXXXXX.
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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