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________________ ★जैन गौरवस्मृतियां ** प्रतीत होता है) इसके बाद बादशाह ने द्रव्य, हाथी, अश्व आदि की भेंट स्वीकार करने की प्रार्थना की परन्तु निस्पृह जैनमुनी अपने आचार के अनुसार इन्हें ग्रहण नहीं करते, ऐसा उत्तर दिये जाने पर भी कुछ न कुछ स्वीकार करने का बादशाह ने त्याग्रह प्रदर्शित किया । तब सूरीश्वर जी कैदियों को मुक्त करने की, पींजड़ों में बन्द पक्षियों को छोड़ने की और पर्युषण के आठ दिनों में राज्यभर में प्रारणीवध न हो ऐसी भावना प्रकट की । बादशाह ने आठ दिन नहीं बल्कि चार दिन अपनी तरफ से मिलाकर बारह दिन के लिए सम्पूर्ण राज्यभर में जीवहिंसा न की जाने के फरमान जारी कर दिये । अपनी सही और मोहर के साथ फरमान की ६ प्रतिलिपियाँ सारे साम्राज्य में पालन कराने के लिए भेज दी गईं। 1 इसके बाद सूरीश्वरजी के शिष्य श्री शान्तिचन्द्र गरणी के कहने से अमर तालाब - जिसे बादशाह ने बड़े शौक से बनवाया था - आचार्य श्री को अर्पण कर दिया अर्थात् वहाँ मछलियाँ मारने की मनाई कर दी गई । बादशाह ने साथ ही अब से शिकार न खेलने की प्रतीज्ञा कर ली । आइने अकबरी में अकबर की कहावतों में यह लिखा है- " राज्य के नियमानुसार शिकार खेलना बुरा नहीं है तथापि पहले जीवरक्षा का ख्याल रखना अत्यन्त आवश्यक है ।" बादशाह अकबर ने यह भी घोषित किया कि सब पशु-प्राणी मेरे राज्य में मेरे समान सुखी रहे ऐसा मैं प्रयत्न करूँगा | नवरोज के दिन 'अमारीघोष' करवाऊँगा । अकबर बादशाह ने इस प्रसंग पर श्री हीर विजयसूरि को 'जगद्गुरू' की उपाधि प्रदान की। सूरीश्वर के कथनानुसार उसने बन्दियों को मुक्त किये, पक्षियों को छोड़ दिये और मछलियों को मारने की मनाई कर दी। इसके पश्चात् बादशाह के मान्य जौहरी दुर्जनमल ने सूरिजी से से कई जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा करवाई । दिल्ली प्रदेश में विचरण कर सूरिजी ने अनेक उपकार के कार्य किये और अनेक अनार्यों ने भी मांसादि न खाने की प्रतीक्षा ली। इसके बाद अपने शिष्य उपाध्याय शान्तिचन्द्र को बादशाह के पास रखकर आचार्य पाटन की ओर पधारे। X(३=१) .
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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