SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Stori e * जैन-गौरव-स्मृतियाँ तीन वर्ष बाद सं १६४५ में जब शान्तिचन्द्र उपाध्याय ने अपने गुरुवर्य के दर्शन के लिए जाने की इच्छा की तब बादशाह ने अपनी तरफ से सूरिजी को भेंट करने के लिए निम्न फरमान जारी कर दिये :-... - (१.) जजिया नामक कर को गुजरात से दूर करने का फरमान। . .. (२.) पर्युषण आदि के बारह दिन तक जीवहिंसा न करने के फरमान जारी किये थे उनमें इतने दिन और स्वेच्छा से बढ़ा दिये-सव रविवार, सूफी लोगों के सब पर्व दिन, ईद के दिन, संक्रान्ति की सब तिथियाँ, अपना जन्म-मास, मिहिर के दिन, नवरोज के दिन, अपने तीनों पुत्रों के जन्म दिन, मोहर्रम महीने का दिन, इस प्रकार वर्ष में कुल ६ मास और ६ दिन. सारे साम्राज्य में किसी प्रकार की जीवहिंसा न की जाय।... भानुचन्द्र-सिद्धिचन्द्रः--- ... ये दोनों हीरविजयसूरि के शिष्य थे। उपाध्याय भानुचन्द्र मुनि ने अकबर को "सूर्यसहस्र नाम" संस्कृ' में सिखलाये । भानुचन्द्र की प्रतिभा से बादशाह बड़ा अनुरंजित हुआ था। इनके कहने से अकबर बादशाह ने शंवञ्जय की यात्रा पर जो कर लिया जाता था वह बन्द कर दिया । इस युगल जोड़ी ने बाण की कादम्बरी पर सुन्दर टीका लिखी हैं उसकी प्रशस्ति में इसका उल्लेख किया गया है। सिद्धिचन्द्र ने अपने कौशल से बादशाह को प्रसन्नं करके सिद्धाचल परं मन्दिर बनाने की निषेधाज्ञा को रदद करवाया ये मुनि बड़े बुद्धिमान थे। ये शतावधानी भी थे। इनके अंबधान प्रयोग देखकर बादशाह ने इन्हें "खुशफहेम" की उपाधि प्रदान की थी। ... विजयसेन सूरिः ये हीरविजयसूरि के प्रधान शिष्य थे । अकवर पर आपका भी बड़ा प्रभाव था। . . यास. वादविद्या में यड़े निपुण थे। अकबर की सभा में इन्होंने १६ नामावादियों को शास्त्राथे में पराजित किये इससे बादशाह ने उन्हें "सवाई विजयसेन' की उपाधि प्रदान की। .. ... ... ......, .
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy