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________________ *जैन-गौरव-स्मृतियां★ मोक्षसाधक धर्म का विशेष परिचय प्राप्त करने की इच्छा से एक विद्वद् मण्डल का आयोजन किया था । हीरविजयसूरि की फैलती हुई कीर्त्ति से आकृष्ट होकर सम्राट् अकबर ने उन्हें अत्यन्त सन्मान के साथ आमंत्रित किया । अकबर ने गुजरात के सूबेदार साहिबखाँ को फरमान भेजा कि. हीरविजयसूरि को अत्यन्त आदर और सम्मान के साथ, सब प्रकार की सुविधाएँ, जो वे चाहें प्रदान कर यहाँ भेजने का प्रबन्ध करो। साहबखान ने अहमदाबाद के श्रावकों को बुलाकर फरमान बताया । श्रावक आचार्य श्री के पास गंधार बन्दर गये । आचार्य श्री ने दीर्घदृष्टि से विचार किया कि बादशाह आदरपूर्वक निमंत्रण देता है तो उसे प्रतिबोध देकर जैनधर्म की प्रभावना करनी चाहिए। यह विचार कर आचार्य श्री ने फतहपुरसीकरी की. ओर विहार किया। सीकरी पदार्पण पर धूमधाम के साथ आचार्य श्री का फतहपुर सीकरी में प्रवेश कराया गया । बादशाह के मंत्री अबुल फजल ने उनका सत्कार किया | वह अपने घर भी उन्हें ले गया और उनसे बातचीत - कर अत्यन्त प्रभावित हुआ । इसके बाद बादशाह के दरबार में सूरीश्वर निमंत्रित किये गये । सूरीश्वर ने जैनसाधु के आचार-विचार का परिचय कराया और जैन सिद्धान्तों का ऐसा सुन्दर निरूपण किया कि सम्राट् उससे अत्यधिक प्रभावित हुआ । वादशाह ने परीक्षा के लिए अपने अमुक जन्मग्रह का फल पूछा । उसके उत्तर में सूरीश्वर ने कहा कि आत्मार्थी जैनसाधु फलादेश कभी नहीं कहते । इससे बादशाह और भी अधिक प्रसन्न हुआ । इसके बाद बादशाह के पुत्र ( सलीम-जहाँगीर ) ने. एक पेटी में से पुस्तकें बाहर निकाल कर भेजों । आचार्य ने पूछा ये जैन-पुस्तकें आपके पास कैसे आईं ? इस पर शाह ने कहा पद्मसुन्दर नामक उनका मित्र था जिसने वाराणासी के ब्राह्मण को बाद में जीता था, उस मित्र का अवसान हो जाने से सब पुस्तकें हमें प्राप्त हुई। आप इन्हें स्वीकार करें | बादशाह के अति आग्रह से वे पुस्तकें आपने स्वीकार की और एक भण्डार में स्थापित कर दीं। ( पद्मसुन्दर भी जैन साधु था ऐसा ketkeelekekekeke ( ३८०) Hetekeleletetele
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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