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________________ See * जैन-गौरव-स्मृतियाँ निवासी देश छोड़कर विखर चुके थे, ऐसे कठिन समय में महाराणा हमीर ने केलवाड़ा में डेरा डालकर सैनिक संगठन किया और मेहता जालसी के प्रयत्न से चित्तौड़ पर पुनः अधिकार स्थापित किया । प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता स्व० श्री गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने "राजपूताने के इतिहास" में आपके सम्बन्ध में निम्न पंक्तियाँ लिखी हैं:-"चित्तौड़ का राज्य प्राप्त करने में राणा हमीर को जाल ( जालसी ) मेहता से बड़ी सहायता मिली जिसके उपलक्ष में उन्होंने उसे अच्छी जागीर दी और प्रतिष्ठा वढ़ाई ।" ...... . महाराणा हमीर के बाद, महाराणा कुम्भा, राणा साँगा और राणा रतनसिंह के समय में कई जैनवीर मुत्सुद्दी और दीवान हुए । राणा सांगा के समय में तोलाशाह. दीवान रहे । राणा रतनसिंह के समय में वोलाशाह के पुत्र सुप्रसिद्ध कर्माशाह दीवान रहे । इन कर्माशाह ने सत्रुन्जय तीर्थ का उद्धार कराया था। वीर आशाशाहः ___ महाराणा रतनसिंह के पश्चात् कुछ सरदारों के सहयोग से दासीपुत्र वनवीर ने चितौड़ पर अपना अधिकार करलिया । उस समय मेवाड़ के भावी राणा उदयसिंह अबोध बालक थे । वनवीर इन्हें मारने के प्रयत्न में था। उदयसिंह पन्ना नामक धाय की गोद में पोषित हो रहे थे। एक दिन रात के समय वनवीर हाथ में तलवार लेकर उदयसिंह को मारने के लिये चला । पन्ना धाय ने खवर पाते ही उदयसिंह को छिपादिया और उनकी जगह अपने कलेजे की कोर के समान पुत्र को सुलादिया । इस महान् त्याग और स्वामी भक्ति के कारण पन्ना मेवाड़ के इतिहास में सदा के लिये अमर हो गयी। . किस देश के इतिहास में इतना सुंदर आदर्श विद्यमान है ? दुष्ट बनवीर ने उदयसिंह के धोखे में पन्नाधाय के पुत्र की नृशंस हत्या कर डाली। इसके पश्चात पन्नाधाय सेवाड़ के भावी महाराणा बालक उदयसिंह की सुरक्षा के लिये कई स्थानों पर गई परन्तु दुष्ट बनवीर के डर से किसी ने राजकुमार को शरण देना स्वीकार नहीं किया। इसके पश्चात् वह कमलमेर (कुम्भलमेर) पहुँची । आशाशाह नामक ओसवाल वंशीय जैन वहाँ का अधिकारी था। पन्ना आशाशाह से मिली । उसने पहुँचते ही राजकुमार को आशाशाह की गोद में रख दिया और कहा "अपने राणा की रक्षा कीजिए।" आशाशाह Kaskikekokkkkke:( ३५७ ):kkkkkkkki
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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