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________________ See जैन गौरव-स्मृतिया See अवाक रह गये। उनकी हिम्मत न हुई कि वह राजकुमार को आश्रय दें किन्तु उनकी माँ यह देखकर तड़फ कर. बोली "स्वामी का हित साधन करने के लिए सच्चे सेवक विघ्न-बाधाओं से नहीं डरते । राणा समरसिंह का पुत्र तुम्हारा स्वामी है। विपत्ति में पड़कर आज तुम्हारा आश्रय चाहता है, इसे आश्रय देकर अपने कर्त्तव्य का पालन करो।" .. . .. आशाशाह ने माँ का कहना शिरोधार्य किया और निश्शंक होकर राजकुमार को अपने यहाँ पर रख लिया। जब उदयसिंह बड़ा हुआ तो आशाशाह की सहायता से, बनवीर से युद्ध कर उसने अपना अधिकार चित्तौड़ पर स्थापित कर लिया। . - बनवीर ने एकबार फिर महाराणा उदयसिंह को राज्य छोड़ने के "लिए बाध्य किया और उदयसिंह को अर्बुद के अंचल में (जहाँ आजकल उदयपुर है ) रहना पड़ा। ऐसे कठिन समय में मेहता जालसी के वंशज मेहता चील की सहायता से वीर आशाशाह ने पुनः उदयसिंह को सिंहासनारुढ किया । इस प्रकार आशाशाह और उनकी वीराङ्गनामाता ने राणावंश को मिटने से बचाया । इससे स्पष्ट है कि मेवाड़ राज्य की रक्षा में जैनवीरों का कितना बड़ा हाथ रहा है। दानवीर भामाशाहः-. - मातृभूमि के लिये अपने स्वामी के श्री चरणों में सर्वस्व अर्पण कर देने वाले दानवीर भामाशाह का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है । संसार के इतिहास में यह एक अनुपम घटना है। .. - दानवीर भामाशाह के पिता भारमलजी, कावंडिया गोत्रीय ओसवाल जैन थे और महाराणा उदयसिंह के दीवान थे । महाराणा उदयसिंह के बाद जब उनके सुपुत्र विश्वविख्यात, महान् देशभक्त, महाराणा प्रताप राज्याधिकारी बने तब भी भामाशाह उनके दीवान रहे। स्वतंत्रता के दिव्य पुजारी, क्षत्रियवंश की उज्ज्वलता के महान संरक्षक, आत्म-गौरव के मूर्तिमान अवतार महाराण प्रताप का नाम संसार में कौन नहीं जानता है ? बच्चे २ की जबान पर महाराणा प्रताप का पवित्र
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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